एफआईआई चंद निवेशकों के फ्रंट न बनें -सेबी

पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी ने तय किया है कि किसी भी नए एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशक) और उनके सब-एकाउंट को पंजीकरण के समय यह घोषणा करनी पड़ेगी कि वह चंद निवेशकों के लिए काम करनेवाली पीसीसी (प्रोटेक्टेड सेल कंपनी) या एसपीसी (सेग्रिगेटेड पोर्टफोलियो कंपनी) नहीं हैं और न ही दूसरा नाम रखकर वह ऐसा कोई काम करता है। साथ ही अगर कोई एफआईआई व्यापक निवेशकों के आधार वाले एमसीवी (मल्टी क्लास वेहिकल) के रूप में काम करना चाहता है तो उसे कुछ कठोर शर्तों का पालन करना पड़ेगा।

सेबी ने एक सर्कुलर के जरिए सभी एफआईआई व उनके कस्टोडियन को यह निर्देश दिया है। यह सकुर्लर 7 अप्रैल को ही भेज दिया गया था। लेकिन इसे आज ही सार्वजनिक किया गया है। असल में सेबी के पास पिछले कई महीनों से लगातार इस तरह की खबरें आ रही थीं कि एफआईआई के जरिए शेयर बाजार में राउंड ट्रिपिंग हो रही है। यानी भारत का पैसा बाहर ले जाकर पीसीसी व एसपीसी के जरिए वापस लाया जा रहा है। इनके पीछे कोई जायज विदेशी निवेशक नहीं हैं, बल्कि यह काले धन को सफेद करने का जरिया भी बन रहा है। सेबी का ताजा कदम इसी को रोकने का हिस्सा है।

सेबी के सर्कुलर में कहा गया है कि 7 अप्रैल या उसके बाद पंजीकरण करानेवाले एफआईआई व उनके सब-एकाउंट को अपने लेटरहेड पर कुछ घोषणाएं करनी होंगी और आश्वासन देने होंगे। जो एफआईआई व सब-एकाउंट पहले से पंजीकृत हैं, उन्हें यह शर्त 30 सितंबर 2010 से पहले पूरी कर लेनी होगी। बता दें कि अपने यहां कोई भी एफआईआई सेबी में पंजीकरण कराए बगैर पोर्टफोलियो निवेश नहीं कर सकता। पारंपरिक तौर पर एफआईआई का रास्ता विदेशी वित्तीय संस्थाओं, बैंक, पेंशन फंड, एनडोमेंट फंड, संप्रभु या सोवरेन फंड या प्रोफेशनल मैनेजरों द्वारा संचालि ऐसे सामूहिक फंडों के लिए बांधा गया है जो किसी न किसी विदेशी नियामक संस्था से नियंत्रित होते हैं।

इसके पीछे भावना यह है कि जो भी फंड भारत में निवेश करें उनके पास निवेशकों का व्यापक आधार हो। ऐसे फंडों की परिभाषा यह है कि उनमें कम से कम 20 निवेशक होने चाहिए और किसी भी एक निवेशक का हिस्सा 49 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए। लेकिन व्यवहार में ऐसा नहीं हो सका। एफआईआई पीएन (पार्टिसिपैटरी नोट्स) जैसे तरीकों से इधर-उधर का धन भारतीय पूंजी बाजार में लाने लगे। इसी मामले में पारदर्शिता बरतने के लिए सेबी ने नया नियम बनाया है।

अब एफआईआई या उनके सब-एकाउंट को घोषणा करनी पड़ेगी कि वह पीसीसी या एसपीसी नहीं है। उसका गठन एमसीवी के रूप में नहीं किया गया है और अगर किया गया है तो उसके पास कई वर्ग के शेयर हैं, उसका आधार व्यापक है। साथ ही उन्हें अंडरटेकिंग (आश्वासन) देनी होगी कि अगर वे एमसीवी की तरह काम कर रहे हैं तो उनका पोर्टफोलियो अलग-अलग शेयर वर्ग में विभाजित है और हर वर्ग व्यापक आधार की शर्त को पूरा करता है।

बता दें कि पीसीसी या एसपीसी ऐसे माध्यम हैं जिनमें कोई भी निवेशक अपनी तरह घुसकर माफिक लाभ ले सकता है। दुनिया के बाजारो में इनका अच्छा-खासा चलन है। दूसरी तरफ एमसीवी एक निश्चित दायरे में निवेशकों के वर्ग के सामूहिक हित में काम करता है। वैसे, सेबी के सर्कुलर के बारे में जानी-मानी कॉरपोरेट लॉ फर्म निशीथ देसाई एंड एसोसिएट्स के विश्लेषक शिखर काकेर व दिवास्पति सिंह का कहना है कि अच्छी मंशा के बावजूद सेबी का यह कदम ‘नी-जर्क’ प्रतिक्रिया है। हड़बड़ी में लिया गया यह फैसला यही दिखाता है कि हमारे बाजार अभी परिपक्व नहीं हुए हैं। ये बड़ी बारीक किस्म की समस्याएं हैं और हमारे नियामकों को इनसे उसी स्तर के परिष्कृत तरीके से निपटना होगा।

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