एशियन पेंट्स की नियति है गिरना

शेयरों के भाव किस हद तक ग्लोबल और किस हद तक लोकल कारकों से प्रभावित होते है, इसका तो ठीकठाक कोई पैमाना नहीं है, लेकिन इतना तय है कि आज के जमाने में कंपनियों के धंधे पर दोनों कारकों का भरपूर असर पड़ता है। इसीलिए शायद अंग्रेजी के इन दोनों शब्दों को मिलाकर नया शब्द ‘ग्लोकल’ चला दिया गया है। ये ग्लोकल असर कैसे कंपनी को कस लेते हैं, इसका एक उदाहरण है भारत की सबसे बड़ी और एशिया की तीसरी सबसे बड़ी पेंट कंपनी एशियन पेंट्स

कंपनी का हाल जानने से पहले उसके शेयर का हाल। उसका दस रुपए रुपए का शेयर कल बीएसई (कोड – 500820) में 2856.40 रुपए और एनएसई (कोड – ASIANPAINT) में 2855.95 रुपए पर बंद हुआ है। ए ग्रुप  का शेयर है। लेकिन सेंसेक्स व निफ्टी में शामिल नहीं है। हां, फ्यूचर्स व ऑप्शंस सेगमेंट में शामिल है। कल इसके दिसंबर फ्यूचर्स का भाव 2862.35 रुपए रहा है। फ्यूचर्स में रुख गिरावट का है। कंपनी का ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का स्टैंड-एलोन ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 87.71 रुपए है और उसका शेयर फिलहाल 32.57 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है।

जनवरी 2007 के बाद पिछले करीब चार सालों में यह अधिकतम 54.60 के पी/ई पर फरवरी 2010 में ट्रेड हुआ था, जब इसका भाव 2024 रुपए पर चला गया था। इस दौरान इसका न्यूनतम पी/ई अनुपात जनवरी 2009 में 16.73 का रहा है जब यह नीचे में 700 रुपए तक चला गया था। एक बात गौर करें कि शेयर भाव कम होने के बावजूद उसका मूल्यांकन ज्यादा हो सकता है। जैसे फरवरी 2010 में एशियन पेंट्स का शेयर 2024 रुपए पर भी काफी महंगा था। लेकिन अभी 2856 रुपए पर उससे सस्ता है। पिछले 52 हफ्ते में यह शेयर इंट्रा-डे सौदों में ऊपर 3365.95 रुपए (4 जुलाई 2011) और नीचे 2395.05 रुपए (25 फरवरी 2011) तक गया है। इस समय इन दोनों ध्रुवों के करीब-करीब बीच में है। पलड़ा मामूली-सा न्यूनतम की तरफ झुका है। खैर, इस स्तर पर इसमें निवेश करना मुनासिब नहीं रहेगा। इसकी कुछ ठोस वजहें हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं कि देश में घरों को सजाने से लेकर ऑटो व औद्योगिक क्षेत्र तक से पेंट की मांग बढ़ने का काफी फायदा एशियन पेंट्स को मिला है। सितंबर 2011 की तिमाही में उसकी बिक्री 25.46 फीसदी बढ़कर 1843.56 करोड़ रुपए पर पहुंच गई। लेकिन शुद्ध लाभ मात्र 8.53 फीसदी बढ़कर 212.90 करोड़ रुपए पर पहुंच सका। सितंबर की 10.72 फीसदी सालाना मुद्रास्फीति को देखें तो कंपनी का लाभ बढ़ने के बजाय घट गया है। जी हां, कंपनी पर भी महंगाई की मार लगी है। सितंबर 2010 की तिमाही में उसके कच्चे माल व पैकेजिंग सामग्रियों की लागत 977.32 करोड़ रुपए थी, जबकि सितंबर 2011 की तिमाही में यह 20.65 फीसदी बढ़कर 1179.10 करोड़ रुपए पर पहुंच गई।

असल में अच्छे पेंट की मांग बढ़ने से उसके मुख्य कच्चे माल टाइटेनियम डाईऑक्साइड की मांग भी बढ़ गई है, जबकि देश ही नहीं, दुनिया तक में इसकी सप्लाई सीमित है। इस रसायन की वैश्विक निर्माता कंपनी हंट्समैन कॉरपोरेशन ने पिछले सितंबर से इस सितंबर के बीच टाइटेनियम डाईऑक्साइड के दाम 38 फीसदी बढ़ाए हैं, जबकि जून 2011 की तिमाही के बाद दाम 15 फीसदी बढ़े हैं। खबरों के मुताबिक 1 जनवरी 2012 से इसके दाम फिर बढ़नेवाले हैं।

ऊपर से डॉलर के सापेक्ष रुपए के गिरने ने एशियन पेंट्स को ज्यादा ही दबा दिया है। पहले डॉलर 45 रुपए का था, अब 52 रुपए का है। यानी, टाइटेनियम डाईऑक्साइड का दाम 100 डॉलर बढ़ने पर पहले कंपनी पर जहां 4500 रुपए का बोझ बढ़ता था, वहीं अब यह 15.56 फीसदी बढ़कर 5200 रुपए हो गया है। इस तरह अंतरराष्ट्रीय मूल्य में 38 फीसदी की वृद्धि कंपनी के लिए करीब 44 फीसदी पड़ रही है। सामान्य स्थितियों में एशियन पेंट्स बढ़ी लागत का बोझ ग्राहकों पर डाल सकती थी। लेकिन कंपनी जून तिमाही में पेंट के दाम 8.33 फीसदी बढ़ा चुकी है और मौजूदा आर्थिक हालत उसे और दाम बढ़ाने की इजाजत नहीं देते, नहीं तो मांग पर इसका नकात्मक असर पड़ सकता है। वैसे भी सितंबर तिमाही में मानसून का मौसम ज्यादा खिंच जाने से पेंट की मांग दबी-दबी सी रही है। दिसंबर ही नहीं, मार्च तिमाही तक में भी मांग के घटने और लागत के बढ़ने का दबाव कंपनी पर रहेगा। इस तरह ग्लोकल प्रभावों ने कंपनी को दाब रखा है।

शायद इसीलिए इस स्टॉक को बराबर बेचने की सलाह आ रही हैं और पिछले एक महीने में इसने 3260 से 15.2 फीसदी गिरकर 2764 रुपए तक का चक्कर भी काटा है। डॉलर अगर फिर से 45-47 रुपए पर आ गया तो एशियन पेंट्स का शेयर थोड़ा बढ़ सकता है। अन्यथा गिरना ही फिलहाल इसकी नियति है।

कंपनी की इक्विटी 9592 करोड़ रुपए है। इसका 47.22 फीसदी पब्लिक के पास है जिसमें से एफआईआई के पास 17.82 फीसदी और डीआईआई के पास 8.93 फीसदी शेयर हैं। प्रवर्तकों की हिस्सेदारी 52.78 फीसदी है जिसका 22.35 फीसदी हिस्सा (कंपनी की कुल इक्विटी का 11.80 फीसदी) उन्होंने गिरवी रखा हुआ है। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 60,661 है। इसमें से 56,884 (93.78 फीसदी) एक लाख रुपए से कम लगानेवाले छोटे निवेशक हैं जिनके पास कंपनी के 12.50 फीसदी शेयर हैं। कंपनी के पांच बड़े शेयरधारकों के पास 16.24 फीसदी शेयर हैं। इनमें से सबसे ज्यादा 5.73 फीसदी शेयर एलआईसी के पास हैं।

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