सरकार ने दालों के निर्यात पर लगी पाबंदी और एक साल के लिए बढ़ा दी है। मौजूदा रोक की अवधि 31 मार्च 2011 को खत्म हो रही थी। लेकिन अब इसे 31 मार्च 2012 तक बढ़ा दिया गया है। विदेश व्यापार महानिदेशालय ने बुधवार को जारी एक अधिसूचना में कहा है, “दालों के निर्यात पर प्रतिबंध की मीयाद 31 मार्च 2012 तक बढ़ा दी गई है।”
लेकिन यह रोक काबुली चने के निर्यात पर नहीं लागू होगी। साथ ही 10,000 टन आर्गेनिक दालों के निर्यात को भी इस रोक से बाहर रखा गया है। फिलहाल मांग और उपलब्धता की जो स्थिति है, उसे देखते हुए देश में इस साल 36 लाख टन दालों का आयात करना पड़ सकता है। चालू वर्ष 2010-11 में दालों का घरेलू उत्पादन 165.1 लाख टन रहा है। लेकिन योजना आयोग के मुताबिक मांग 191.1 लाख रहेगी।
2009-10 में देश के दालों का उत्पादन 146.6 लाख टन हुआ था। दालों के उत्पादन में तकरीबन आधा हिस्सा चने का है। नए साल 2011-12 में दालों की बम्फर फसल का अनुमान है। पर योजना आयोग का आकलन है कि इस दौरान मांग भी इसी अनुपात में बढ़ जाएगी। गौरतलब है कि भारत दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक व उपभोक्ता देश है। भारतीयों के लिए दाल प्रोटीन का सबसे प्रमुख स्रोत है।
बता दें कि दालों के निर्यात पर बंदिश जून 2006 से ही चल रही है। तब यह कदम देश में दालों की उपलब्धता बढ़ाने और दामों पर अंकुश लगाने के लिए उठाया गया था। इस बीच दालों के दाम बढ़ते ही गए हैं। पिछले साल तो अरहर की दाल 110 रुपए प्रति किलो तक चली गई थी। हालांकि इस बार फरवरी 2011 में दालों के थोक मूल्य सूचकांक में केवल 1.89 फीसदी वृद्धि हुई है, जबकि साल भर पहले यह वृद्धि 12.72 फीसदी थी। 12 मार्च को समाप्त हफ्ते में तो दालों के दाम बढ़ने के बजाय 3.78 फीसदी गिरे हैं। थोक मूल्य सूचकांक में दालों का भार 0.72 फीसदी रखा गया है।