सरकार ने 1 अप्रैल 2023 से शेयर बाज़ार के फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस (एफ एंड ओ) सेगमेंट में होनेवाले सौदों पर सिक्यूरिटीज़ ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी) 25% बढ़ा दिया है। पहले एक करोड़ रुपए के फ्यूचर्स सौदों पर 1000 रुपए एसटीटी लगता था, जबकि अब यह 1250 रुपए लगेगा। वहीं, ऑप्शंस की बिक्री पर पहले 0.05% एसटीटी लगता था, अब 0.0625% लगेगा। इस तरह इसमें भी 25% वृद्धि की गई है। पहले ऑप्शंस में एक करोड़ रुपए के सौदेऔरऔर भी

समय कितना बेरहम और भविष्य कितना अनिश्चित है! एनडीटीवी के अधिग्रहण के बाद जब हर तरफ अडाणी समूह की तूती बोल रही थी, उसकी शीर्ष कंपनी अडाणी एंटरप्राइसेज़ का 20,000 करोड़ रुपए का ऐतिहासिक एफपीओ (फॉलो-न पब्लिक ऑफर) आने ही वाला था, समूह के मुखिया गौतम अडाणी घूम-घूमकर मीडिया को इंटरव्यू दे रहे थे कि वे कितने ज़मीन से उठे उद्यमी और लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था रखनेवाले व्यक्ति हैं (यहां तक कि कुछ लोग दबी जुबान सेऔरऔर भी

अगर आप शेयरों की ट्रेडिंग में दिलचस्पी रखते हैं तो डब्बा ट्रेडिंग का नाम ज़रूर सुना होगा। हर गैर-कानूनी काम की तरह यह भी हल्के-फुल्के मुंगेरीलाल टाइप लोगों को खूब खींचता है। कोई लिखा-पढ़ी नहीं, रिकॉर्ड नहीं, सारा लेनदेन कैश में, सारी कमाई काली। फिर इनकम टैक्स देने या रिटर्न भरने का सवाल ही नहीं। सारे सौदे स्टॉक एक्सचेंज के बाहर होते हैं तो सिक्यूरिटी ट्रांजैक्शन का सवाल ही नहीं उठता। साथ ही कोई दिक्कत आने याऔरऔर भी

देश के गृहमंत्री और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जोड़ीदार अमित शाह ने 8 दिसंबर को किसान नेताओं के साथ हुई बैठक में कहा था कि अगर सरकार सभी घोषित 23 फसलों को एमएसपी पर खरीदने लग जाए तो उसे हर साल 17 लाख करोड़ रुपए देने पड़ेंगे। अगर ऐसी बात है तो क्या एमएसपी केवल दिखाने के लिए है, देने के लिए नहीं। हाथी के दांत दिखाने के और, खाने के और? सवाल उठता है कि आखिरऔरऔर भी

स्वतंत्रता दिवस, 15 अगस्त 2020 को शनिवार का दिन था। शनि का दिन यानी मानें तो दुर्बुद्धि का दिन। पिछली बार 15 अगस्त को गुरुवार का दिन था। गुरु का दिन, बुद्धिमत्ता का दिन। लेकिन तब 15 अगस्त 2019 के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले की प्राचीर से बड़ी दुर्बुद्धि वाली बात कही थी। उन्होंने ‘बेतहाशा जनसंख्या विस्फोट’ का जिक्र करते हुए कहा था, “जनसंख्‍या विस्‍फोट हमारे लिए, हमारी आनेवाली पीढ़ी के लिए अनेक नए संकटऔरऔर भी

गंगोत्री से गंगा की धारा के साथ बहते पत्थर का ऊबड़-खाबड़ टुकड़ा हज़ारों किलोमीटर की रगड़-धगड़ के बाद शिव बन जाता है, मंगल का प्रतीक बन जाता है। आंख में ज़रा-सा कण पड़ जाए तो हम इतना रगड़ते हैं कि वह लाल हो जाती है। लेकिन सीप में परजीवी घुस जाए तो वह उसे अपनी लार से ऐसा लपटेती है कि मोती बन जाता है। ऐसे ही हैं हमारे रीति-रिवाज़ और त्योहार जो हज़ारों सालों की यात्राऔरऔर भी

कभी आपने सोचा है कि ज़रा-सा होश संभालते ही हम धन के चक्कर में घनचक्कर क्यों बन जाते हैं? और, यह धन आखिरकार आता कहां से है, इसका स्रोत, इसका उत्स क्या है? हम ट्रेडिंग भी तो इसीलिए करते हैं कि खटाखट धन आ जाए! निवेश भी इसीलिए करते हैं कि हमारा जितना धन है, वह बराबर बढ़ता रहे। आइए, आज हम धन के चक्कर में घनचक्कर बनने और धन-चक्र को समझने की कोशिश करते हैं। पहलेऔरऔर भी

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हर कोई अपने धन को अधिक से अधिकतम करना चाहता है। लेकिन कर कौन पाता है? किसान और ईमानदार नौकरीपेशा इंसान तो हर तरफ से दबा पड़ा है। अपने धन को अधिकतम कर पाते हैं एक तो नेता और नौकरशाह, जो हमारे द्वारा परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से दिए गए टैक्स की लूट और बंदरबांट में लगे हैं। वे अपनी हैसियत और पहुंच का फायदा उठाकर जनधन को जमकर लूटते हैं और देखते ही देखते करोड़पति सेऔरऔर भी

यह सच है कि इंसान और समाज, दोनों ही लगातार पूर्णता की तरफ बढ़ते हैं। लेकिन जिस तरह कोई भी इंसान पूर्ण नहीं होता, उसी तरह सामाजिक व्यवस्थाएं भी पूर्ण नहीं होतीं। लोकतंत्र भी पूर्ण नहीं है। मगर अभी तक उससे बेहतर कोई दूसरी व्यवस्था भी नहीं है। यह भी सर्वमान्य सच है कि लोकतंत्र और बाजार में अभिन्न रिश्ता है। लोकतंत्र की तरह बाजार का पूर्ण होना भी महज परिकल्पना है, हकीकत नहीं। लेकिन बाजार सेऔरऔर भी

पहले जब तक गांव से ज्यादा जुड़ाव था, नौकरीपेशा तबके को जीवन बीमा की जरूरत नहीं लगती थी। भरोसा था कि जमीन-जायदाद के दम पर हारी-बीमारी से लेकर बुढ़ापे तक का इंतजाम हो जाएगा। लेकिन गांव से रिश्ता टूटता गया और ज्यादातर जोतों का आकार घटकर दो-ढाई एकड़ से कम रह गया तो अब हर कोई जीवन बीमा की सोचने लगा है। मगर, आंख पर पट्टी बांधकर। जैसे, मेरे एक हिंदी पत्रकार मित्र हैं। अंग्रेजी-हिंदी दोनों भाषाओंऔरऔर भी