अपना शेयर बाज़ार तेज़ी के ऐतिहासिक शिखर तक जा पहुंचा है। सेसेंक्स 9 अप्रैल को 75,000 के पार चला गया, जबकि निफ्टी 25,000 तक पहुंचने की तैयारी में हैं। एनएसई का निफ्टी-50 सूचकांक इस समय 23.08 और बीएसई का सेंसेक्स-30 सूचकांक 25.37 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। यह वो स्तर है जो प्रोफेशनल निवेशकों को असहज बना देता है और वे निवेश बढ़ाने के बजाय मुनाफा निकालने की सोचने लगते हैं। शुक्रवार को विदेशीऔरऔर भी

रिजर्व बैंक ने नए वित्त वर्ष की पहली मौद्रिक नीति में रेपो दर को 6.5% पर जस का तस रखा है। इस दर पर रिजर्व बैंक बैंकों को एकाध दिन के लिए उधार देता है। यह पूरे सिस्टम में ब्याज दर की मानक है। इससे पहले कोविड महामारी के दौरान मई 2020 में उसने रेपो दर घटाकर 4% की थी। फिर इसे धीरे-धीरे बढ़ाकर फरवरी 2023 में 6.5% किया और तब से बदला नहीं है। रिजर्व बैंकऔरऔर भी

सेंसेक्स व निफ्टी ही नहीं, स्मॉल-कैप व मिड-कैप सूचकांकों की चाल देखकर हम अक्सर मगन हो जाते हैं कि वाह! शेयर बाज़ार में क्या तेज़ी चल रही है। आकार और उद्योग व सेवा क्षेत्र पर आधारित ऐसे 15-15 सूचकांक अलग से हैं जिनकी धड़कनों से बाज़ार का ताज़ा हाल जाना जा सकता है। लेकिन इतना ज्ञान बिजनेस चैनलों व सोशल मीडिया के सतही एनालिस्टों के लिए काफी हो सकता है, शेयर बाज़ार में गहरी पैठ की चाहऔरऔर भी

देश में चुनावों के माहौल में घोटालों की बहार है। जिन चुनावी बॉन्डों का पूरा ब्योरा देने के लिए देश का सबसे बड़ा बैंक एसबीआई तीन महीने का वक्त मांग रहा था, वह सुप्रीम कोर्ट की फटकार लगते ही तीन दिन में सारा डेटा लेकर सामने आ गया। अब चुनावी बॉन्डों के जरिए कॉरपोरेट क्षेत्र से की गई रिश्वतखोरी व वसूली और मनी-लॉन्ड्रिंग को छिपाने की भरपूर कोशिशें की जा रही हैं। लेकिन आर्थिक व वित्तीय क्षेत्रऔरऔर भी

माना जा रहा था कि भारत से लाइसेंस-परमिट राज 33 साल पहले 1991 में नई आर्थिक उदार नीतियां लागू होने के बाद खत्म हो गया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर चुनावी बांडों के खुलासे से साफ हो गया कि देश में अब भी कंपनियों के लिए सरकार की कृपा बहुत मायने रखती है। जिस तरह अपोलो टायर्स, बजाज ऑटो, बजाज फाइनेंस, ग्रासिम इंडस्ट्रीज़, महिंद्रा ग्रुप, पिरामल एंटरप्राइसेज़, गुजरात फ्लूरोकेमिकल्स, टीवीएस, सनफार्मा, वर्द्धमान टेक्सटाइल्स, मुथूत, सुप्रीम इंडस्ट्रीज़,औरऔर भी

भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। लेकिन हमारा शेयर बाज़ार महीना भर पहले हांगकांग को पीछे छोड़कर दुनिया का चौथा बड़ा शेयर बाजार बन गया। अब अमेरिका, चीन व जापान के शेयर बाज़ार ही हम से ऊपर हैं। तीन दिन पहले 7 मार्च को तो निफ्टी-50 और बीएसई सेंसेक्स नए ऐतिहासिक शिखर पर पहुंच गए। अब सभी को डर सताने लगा है कि यहां से बाज़ार कहीं खटाक से गिर गया तो? आखिर चीन काऔरऔर भी

देश के 90% से ज्यादा लोगों की महीने की आमदनी ₹25,000 से कम है। समझना मुश्किल नहीं कि इसमें से कितने में वे घर-परिवार चलाते होंगे, कितना हारी-बीमारी जैसे आकस्मिक खर्च पर जाता होगा और इसके बाद वे कितना बचा पाते होंगे। डेटा बताता है कि अप्रैल 2020 से मार्च 2023 तक भारतीय घरों की कुल वित्तीय बचत ₹86.2 लाख करोड़ रही है। इसमें से ₹31.6 लाख करोड़ बैंक व अन्य संस्थाओ के एफडी, ₹49.5 लाख करोड़औरऔर भी

शेयर बाज़ार से कमाने के लिए अगर हम निवेश और ट्रेडिंग के अंतर को सही-सही समझ लें तो हमारी सफलता की प्रायिकता बढ़ जाती है। याद रखें कि शेयर बाज़ार में पक्का कुछ नहीं। यहां सब कुछ रैंडम या यदृच्छया चलता है। इसलिए यहां सफलता की प्रायिकता या प्रोबैबिलिटी ही चलती है। लेकिन यह बात मन में पक्के तौर पर बैठाना लेनी चाहिए कि निवेश लम्बे समय की ट्रेडिंग है और ट्रेडिंग छोटे समय का निवेश। इसऔरऔर भी

खास लोगों की बात अलग है। सांसद-विधायक एक बार में इतना कमा लेते हैं कि सात पुश्तों का इंतज़ाम। ऊपर से ताजिंदगी भरपूर पेंशन। सरकारी कर्मचारियों को बराबर महंगाई भत्ता। लेकिन हमारे-आप जैसे आम आदमी की कमाई कभी महंगाई के हिसाब से नहीं बढ़ती। बीस साल में देशी घी ₹150 से ₹600 किलो और 10 ग्राम सोना ₹6000 से ₹60,000 का हो गया। लेकिन हमारी कमाई भी क्या इसी रफ्तार से बढ़ी? जो खा-पी लिया, पहन-ओढ़ लिया,औरऔर भी

इस समय अपनी अर्थव्यवस्था ही नहीं, शेयर बाज़ार तक का हाल विचित्र है। अर्थव्यवस्था में 17% का योगदान करनेवाली केंद्र व राज्य सरकारों का हाल दुरुस्त है। मगर, बाकी 83% योगदान करनेवाले छोटे-बड़े उद्योगों व आम घरों का हाल पस्त है। शेयर बाज़ार में उन कंपनियों के शेयर चमकते ही जा रहे हैं, जिनका धंधा सरकारी खपत पर टिका है। आईआरबी इंफ्रा जैसी कंपनी का शेयर साल भऱ तीन गुना हो चुका है। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकरऔरऔर भी