अब तक जो चुका है, उसका इशारा कुछ और होता है, जबकि हो जाता है कुछ और। फिर भी हम भविष्य की योजना बनाना नहीं छोड़ सकते क्योंकि पूरी तरह भाग्य भरोसे रहना इंसान की मूल फितरत नहीं है। जहां जानवर हमेशा परिस्थितियों के माफिक खुद को ढालते हैं और इंसान भी कुछ हद तक ऐसा करता है, वहीं इंसान हालात को बदलता भी है। यही मानव सभ्यता की विकासगाथा का मूल है। अब गुरु की दशा-दिशा…औरऔर भी