दुनिया हमारे मन से नहीं, अपने नियम-धर्म से चलती है। धन से जुड़े वित्तीय बाज़ार का हाल तो एकदम निराला है। व्यक्तियों का मनोविज्ञान जब एक साथ मिलकर समूह का मनोविज्ञान बनता है तो उसका रूप-रंग एकदम बदल जाता है। लेकिन हम मन में जमे अपने पूर्वाग्रहों से इस कदर चिपके रहते हैं कि सामूहिक मनोवैज्ञानिक को समझ नहीं पाते। ट्रेडिंग से कमाने में हमारा यह सहज ‘संस्कार’ बड़ा घातक साबित होता है। अब गुरु की दशा-दिशा…औरऔर भी