इधर बैंकों के एनपीए से लेकर कमज़ोर रुपए, महंगे तेल व आर्थिक फ्रॉड जैसे मुद्दों ने राजनीति को जकड़ लिया है। विकास का नारा धार खो चुका है तो भाजपा हिंदू धर्म और राष्ट्र के नाम पर ध्रुवीकरण करना चाहेगी। लेकिन सतह पर मची इस उथल-पुथल के नीचे अच्छी कंपनियों की अंतर्धारा अनवरत बह रही है। सवाल इतना-सा है कि उनके शेयर निवेश करने लायक स्तर तक गिरे हैं कि नहीं। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी