उनके खेल का राज़ भगवान ही जाने!

बराक ओबामा ने अमेरिका में नौकरियों के नए अवसरों को प्रोत्साहित करने के लिए 447 अरब डॉलर के पैकेज की घोषणा कर दी। वहां अगले साल राष्ट्रपति चुनाव होने हैं तो ओबामा को ऐसा कुछ करना ही था। इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था की हालत में थोड़ा और सुधार आएगा। यह अलग बात है कि इस पैकेज की राह में आनेवाली राजनीतिक अड़चनों की सोचकर अमेरिका व यूरोप के बाजारों ने इस पर तल्ख नकारात्मक प्रतिक्रिया दिखाई है। अपने यहां भी प्री-ओपन सत्र में बढ़ा बाजार कारोबार की समाप्ति तक नीचे आ गया। निफ्टी 1.82 फीसदी घटकर 5059.45 और सेंसेक्स 1.74 फीसदी घटकर 16,866.97 पर बंद हुआ।

एक बात नोट कर लें कि अपने यहां बड़े ब्रोकिंग हाउसों की तरफ से और भी डाउनग्रेड व अपग्रेड होने जा रहे हैं। लेकिन मेरी दृढ़ मान्यता है कि निवेशकों को फिलहाल इन्हें नजरअंदाज करना चाहिए और किसी स्टॉक के बारे में अपनी धारणा व आकलन को ही तवज्जो व तरजीह देनी चाहिए। बाजार में अजब-गजब चल रहा है। 35 से ज्यादा पी/ई पर ट्रेड हो रहे स्टॉक्स को अपग्रेड किया जाना मेरी समझ के बाहर है और जो स्टॉक्स अपने उद्यम मूल्य (ईवी) से भी नीचे चल रहे हैं, उन तक को डाउनग्रेड किया जाना भी मेरी समझ के बाहर है।

खैर, अगस्त महीने में 2.5 अरब डॉलर के स्टॉक की रिकॉर्ड बिकवाली के बाद एफआईआई सितंबर में अभी तक शुद्ध खरीदार रहे हैं। बावजूद इसके कि माना जाता है कि सितंबर का महीना शेयर बाजार के हमेशा अशुभ रहा है। वैसे इस बार भी ऊपर-ऊपर से इस खरीद का कोई तर्क नहीं दिख रहा। कारण, सभी प्रमुख व मजबूत एफआईआई यही मानते व कहते रहे हैं कि अभी बाजार का मूल्यांकन खिंचा हुआ है और निफ्टी का 4600 पर जाना खरीद का आदर्श स्तर होगा। फिर भी अभी तक वे खरीदते ही रहे हैं!!

मैं यह बात समझ सकता हूं कि एलआईसी बाजार को इसलिए समर्थन देने में जुटा हुआ है क्योंकि ओएनजीसी का एफपीओ 20 सितंबर को आना है और इसका आकार 8000 करोड़ रुपए का है। अगर एफआईआई को इसमें निवेश करना है तो उन्हें अब तक शुद्ध बिकवाल होना चाहिए था। लेकिन ऐसा तो है नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि वे निफ्टी के 5350 तक पहुंचने तक खरीदना चाहते हैं और उसके बाद बेचेंगे? लेकिन अगर ऐसा ही है तो वे बेचेंगे आखिर किसे?

या, कहीं ऐसा तो नहीं कि वे 4600 की तरह उंगली दिखाकर खुद 5100 पर खरीदे चले जा रहे हैं? भगवान जाने कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं? कुछ लोग कह रहे हैं कि वे भारत और वैश्विक बाजार में आर्बिट्राज पर खेल रहे हैं। लेकिन अगर ऐसा है तो उन्हें स्टॉक्स में नहीं, डाउ जोन्स फ्चूचर्स में ऐसा करना चाहिए था। वैसे भी सवाल यह है कि हम स्टॉक्स की लिक्विडिटी या तरलता में विश्व स्तर के कहीं से ही अनुरूप हैं भी कि नहीं?

इसलिए मेरा सुझाव यही है कि बढ़ने की धारणा दिमाग के किसी कोने में रखते हुए सावधानी से ट्रेड करें। छोटी अवधि के सौदों में अपनी धारणा तभी बदलें जब निफ्टी 5090 के नीचे चला जाए। मध्यम अवधि के ट्रेड में ऐसा 5000 से नीचे जाने पर करें। एक बात गांठ बांध लें कि निफ्टी 4605 तक तभी पहुंचेगा, जब इतनी बुरी हालत आ जाएगी कि अमेरिका का डाउ जोन्स सूचकांक 10,500 के नीचे पहुंच जाए। लेकिन अभी के जो हालात में हैं, उसमें इतनी गिरावट की गुंजाइश बेहद कम है। अभी जोखिम और उपलब्धि का पलड़ा खरीद या लांग सौदों के पक्ष में झुका हुआ है। गिरावट की आशंका जहां 10 फीसदी है, वहीं बढ़ने की संभावना 40 फीसदी है।

यह मत पूछो कि दुनिया को क्या चाहिए। यह पूछो कि वह क्या चीज है जो सबमें जान डाल देगी और फिर उसे पाने में जुट जाओ क्योंकि दुनिया को ऐसे लोग चाहिए जो जान और ऊर्जा से लबालब हों।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होंगे। यह मूलत: सीएनआई रिसर्च का पेड-कॉलम है, जिसे हम यहां मुफ्त में पेश कर रहे हैं)

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