पैसा भी कैसे बन जाए कमाऊ-पूत!

भारत युवाओं का देश, जहां की 65 फीसदी आबादी 35 साल के नीचे की है। इस युवा देश की नई पीढी खुली और तेजी से बढती अर्थव्यवस्था के साथ जवान हुई है। इसी माहौल में पला-बढ़ा हमारा नया निवेशक भी देश की अर्थव्यवस्था में भागीदारी करता है। पर ज्यादातर कामयाब नहीं हो पाता। कारण वित्तीय जानकारी या साक्षरता का अभाव। सब कुछ बदल चुका है या बदलाव पर है। सोच से लेकर दिनचर्या, नियामक से लेकर नियम, निवेश से लेकर उसके तरीके तक। लेकिन जो नहीं बदला वो है निवेश को लेकर हमारी सोच, जिसका कारण है वित्तीय जानकारी या साक्षरता का अभाव और तिरस्कार दोनों।

वैसे आज संचार के हर माध्यम से जानकारी बढाने की दिशा में काफी प्रयास हो रहे हैं। पर अफसोस! अधिकतर कैप्सूल कोर्स हैं, जिनके लिए फंडामेटल जरूरी हैं। आप बिजनेसमैन बनना चाहते हो या डॉक्टर, सीए, आईएएस या कुछ भी। मूल जानकारियां जरूरी है। प्रोफेशन में सेट हो जाने के बाद भी जानकारी से लबरेज रहना होता है। लेकिन कितना भी अनुभवी पायलट हो, पहले ट्रेनिंग फिर ट्रैफिक कंट्रोलर की जरूरत से इनकार नहीं कर सकता है।

अच्छा बताइये। सोने के अभी के दाम क्या कभी घटेंगे? पेट्रोल के भाव या लोन ब्याज दर कभी कम होगी? जनाब! जब इन सभी बाजार संचालित उत्पादों का दाम कम नहीं होगा तो उद्गम स्थली, यानी बाजार क्यों कर धोखा दे जाता है। कभी सोचा कि शेयर बाजार में आप मात क्यों खा जाते हैं?

साइकिल चलाना आपको आता नहीं है, आप सीखते है। 1+1=2 होता है, आपने सीखा है आप जानते नहीं थे। पैसा कमाना आपने सीखा है या आप जानते थे? याद कीजिये। दरअसल ये सब जिसमें आज आप पारंगत है, उसे आपने शुरुआत मे मार्गदर्शक के सहारे से सीखा, जाना या किया था। उच्च शिक्षा प्राप्त अभिभावक भी बच्चों को पढाते हैं स्कूल/गुरू की छत्र-छाया में। इसी तरह स्वतंत्र वित्तीय सलाहकार भी निवेश में मार्गदर्शक होते हैं, जो एक निश्चित फीस पर आपके लिए काम करते हैं। ध्यान दें यहां बात स्वतंत्र वित्तीय सलाहकार की हो रही है, न कि कमीशन एजेंटो की।

और, लाख टके की बात। जनाब! ये है कि हम इंसान तीन चीजें पैदा करते है – औलाद, अनाज और पैसा। पहले दो, औलाद और अनाज को तो अपना मानते हैं। किसान सेहतमंद फसल के लिए कितना खटता है। बोरिंग लगाओ, कुआं खोदो, खाद डालो। अरे बेटा, तबीयत खराब हो गई, चलो डॉक्टर पास। सही तालीम पाकर बच्चा आपका नाम रौशन करे, इसके लिए अच्छे स्कूल से लेकर ट्यूशन, इंस्टीटूशन्स की गूगली सर्च मारते हैं। पर वहीं जब बात पैसे की आती है तो सौतेला व्यवहार – गया! जाने दो।

कभी पुचकार कर हाल जानते तो जवाब आता – ये स्कूल अच्छा नहीं है। और तो और कभी पूछिए – कितने दिन के लिए पैसा लगाना है तो आम जवाब 6 महीने-साल भर। मेरे सरकार! जवाब दीजिए। नहीं तो सोचिएगा जरूर कि जब आपका दो साल का बच्चा आपको चाय बनाकर नहीं पिला सकता तो अपने नवजात फंड/स्टॉक से ऐसी नाजायज मांग क्यों? दूसरे, एफडी या डाक बचत को 5 साल, फिर शेयर या म्यूचुअल फंड के साथ इतनी नाइंसाफी, क्यों? तीसरे, जब आपको खुद 40-50 हजार की सैलरी पाने में 25 से 35 साल लग गए तो क्या थोडा-सा वक्‍त आपका ये ’बच्चा’ भी लेगा कि नही? तो पहले पढाई (संचय) कराए कि पैसा सीए बने न कि मजदूर, जहां दिहाड़ी एक दिन, फांके चार रोज होते हैं।

क्या आप जानते हैं, कि पिछले 25 सालों में शेयर बाजार 100 गुना बढ़ा है, जबकि फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) में सिर्फ 6 से 10 गुना वृद्धि हुई है। क्या आप जानते कि 30 साल के व्यक्ति का 20 लाख का बीमा महज सालाना के 4-6 हजार में हो जाता, जबकि यूलिप में 1,33,333 (SAMF 15) रुपए में होता है। एक हजार की मासिक सिप जो 2 मार्च 2000 से 2 फरवरी 2005 तक चली, उसमे कुल जमा 60 हजार पर रिटर्न आता 259% यानी 2,15,256 रुपए।

लेकिन एक कुशल सलाहकार ने मॉनिटरिंग करते हुए बाजार के हर डिस्काउंट सीजन (जिसे लोग डाउन मार्केट बोलते है) पर पांच हजार के गुणकों में 3 बार यानि 15 हजार रुपए का अतिरिक्त निवेश कराके रिटर्न को 343% यानि 2,80,817 रुपए का लाभ दिलाया, जो 25% के विशेष निवेश पर 84% अतिरिक्त है। इसे कहते वित्तीय प्रबंधन जिसका मूल उद्देश्य कम से कम निवेश कराके अधिकतम रिटर्न की प्राप्ति है। यहां डिस्काउंट सीजन की पहचान की गई, जिसे उस समय निवेशक से बेहतर उसका सलाहकार जानता था। और, संगत का असर का रंग ये रहा कि वो निवेशक आज स्टॉक मार्केट विशेषज्ञ है, उसी सलाहकार के साथ!

वित्तीय सलाहकार शेयर से लेकर म्यूचुअल फंड, सरकारी-प्राइवेट फिक्स्ड डिपॉजिट से लेकर डाक-बचत स्कीम की जानकारी रखते है, जिसे आपका रिस्क प्रोफाइल जानने के बाद प्रस्तावित और व्यवस्थित करते हैं। प्रस्ताव के बाद वित्तीय सलाहकार और उसकी टीम मार्केट मॉनटरिंग करती है। यहीं एक ध्यान देने वाली बात जो स्वतंत्र वित्तीय सलाहकार की विश्वसनीयता, भरोसे, क्षमता और सेवान्मुखता – इन सबकी शुरुआत में ही एक साथ परख कराती है, वह यह कि वित्तीय सलाहकार आपको प्रस्तावित स्कीम, फंड या स्टॉक को कहीं से भी लेने की स्वतंत्रता देता है कि नहीं।

सबसे जरूरी है कि अपनी आंखें और दिमाग खुला रखकर किसी वित्तीय सलाहकार को नियुक्त करें। थोड़ा कष्ट उठाने से आपको ही बेहतर चुनाव करने में काफी मदद मिल सकती है। अगर पैसा सुरक्षित हाथों में फलता-फूलता है तो आपको ही फायदा होगा। साथ ही वित्तीय सलाहकार के रूप में ही आपको एक दीर्घकालिक भरोसेमंद आर्थिक संबंधी भी मिल सकता है। तो, सौतेला व्यवहार न करते हुए सही स्कूल (सलाहकार) में भर्ती कराएं और यकीन मानिए कि आपका ये पैसा भी एक दिन आपका कमाऊ पूत बनकर आपके लिए पैसा लाएगा जैसे कि आप हर महीने सैलरी लाते हैं।

है अपना काम तो समझाना, ए दिल रिश्ते तोड़ के जोड़। जुदाई की घडियां लाखों-करोडों, मिलन के लम्हे दो या तीन।।

– शक्ति शुक्ला (लेखक राउरकेला, उड़ीसा में कार्यरत एक वित्तीय सलाहकार हैं)

6 Comments

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