18% बढ़ा बाजार 10% गिर गया तो!

सोमवार को महाशिवरात्रि की छुट्टी। बाजार मंगलवार को खुलेगा। डेरिवेटिव सौदों का सेटलमेंट इसके दो दिन बाद गुरुवार 23 फरवरी को पूरा होगा। इस तरह रोलओवर के लिए मंगलवार को मिलाकर तीन दिन ही बचे हैं। सिद्धांत कहता है कि बीते हफ्ते जिस तरह बाजार 3 फीसदी बढ़ा है, उसमें अब करेक्शन आना चाहिए। लेकिन भारतीय बाजार का व्यवहार कहता है कि गुरुवार तक ऐसा होने के आसार नहीं है। कुछ जानकारों का कहना है कि शुक्रवार को 5564 पर बंद हुआ निफ्टी खटाक से 5610 तक जा सकता है। गुरुवार के बाद गिरा तो इसे 5475 के आसपास अच्छा समर्थन मिल सकता है।

दूसरे लोग कहते हैं कि जिस तरह शुक्रवार को निफ्टी फ्यूचर्स खुला ही 5700 पर, उसे देखते हुए यह 5700 तक चला जाएगा और फिर इसके 5840 तक पहुंचने की राह खुल जाएगी। लेकिन उनका यह भी कहना है कि बाजार इस वक्त उस्तादों के खेल की बदौलत उठाया गया है और शुक्रवार के बाद किसी भी वक्त यह ताश के पत्तों की तरह ढह सकता है। निफ्टी गिरते-गिरते पहले 5320 पर थमेगा। फिर 5180 होगी इसकी मंजिल।

कहने का सार यह है कि बाजार में अगले हफ्ते ही नहीं, 16 मार्च को बजट आने तक और उसके बाद 15-20 दिनों तक वोलैटिलिटी बढ़ी रहेगी। खटाक से ऊपर, खटाक से नीचे का क्रम चलता रहेगा। इसलिए ट्रेडरों को एकतरफा दांव लगाने से बचना चाहिए। शॉर्ट को लांग से और लांग को शॉर्ट से हेज करते हुए चलना पड़ेगा।

असल में ट्रेड या निवेश करते समय हमें अपने बाजार के मूल चरित्र और यहां होनेवाले खेल से वाकिफ होना जरूरी है। इसके लिए एक बानगी पेश करता हूं। एचडीआईएल का शेयर दो साल पहले फरवरी 2010 में 340 रुपए के आसपास चल रहा था, जबकि कंपनी के ऊपर 3300 करोड़ रुपए का कर्ज था। सब स्थिति वही रही है। लेकिन कर्ज को अचानक मुद्दा बनाकर ऑपरेटरों ने बीएसई-100 में शामिल इस स्टॉक को डेरिवेटिव सेगमेंट में तोड़कर बैठा दिया। कैश सेटलमेंट की मौजूदा व्यवस्था में खरीदार ट्रेडर डिलीवरी मांग नहीं सकते तो उस्ताद लोग भाव को दबाकर नीचे-नीचे 55 रुपए तक गिरा ले गए।

यह शेयर नए साल के पहले कारोबारी दिन 2 जनवरी 2012 को 52.10 रुपए तक चला गया। अब अगला दौर शुरू हुआ। कंपनी के फंडामेंटल्स में कोई तब्दीली नहीं आई है। लेकिन उठता जा रहा है। पहला पड़ाव 80 रुपए, फिर 95, फिर 115 रुपए और बीते हफ्ते शुक्रवार को यह 128.20 रुपए तक जाने के बाद 122.70 रुपए पर बंद हुआ है। 2 जनवरी से 17 फरवरी तक शेयर दोगुना! करीब 100 फीसदी की वृद्धि!! फंडामेंटल एनालिसिस गई तेल लेने। टेक्निकल एनालिसिस को अपने हिसाब से नचाया। ट्रेडरों को गियर में लिया और कैश का अंतर डकार मार गए। यह खेल है हमारे बाजार के उस्तादों का जो स्टॉक डेरिवेटिव सौदों में एनएसई में चल रही कैश सेटमेंट की व्यवस्था का फायदा उठा रहे हैं।

असल में किसी भी प्रणाली की असली परीक्षा डिलीवरी में होती है। अगर निवेशकों व ट्रेडरों को डिलीवरी का विकल्प दिया जाएगा तो डेरिवेटिव की छाया असली शेयरों की काया, वास्तविक आस्ति में बदल जाएगी। इस क्रम में बाजार से बाहर गया भारतीय धन वापस आने लगेगा। इससे विदेशी पूंजी पर हमारी निर्भरता घटेगी और उतार-चढ़ाव भी शांत हो जाएगा। जनवरी के बाद सेंसेक्स करीब 18 फीसदी बढ़ा है। इसकी सबसे खास वजह है कि एफआईआई इस साल अब तक 21,590 करोड़ रुपए (करीब 480 करोड़ डॉलर) हमारे शेयर बाजार में लगा चुके हैं, जबकि साल 2011 में उन्होंने शुद्ध रूप से 26,873 करोड़ रुपए की निकासी की थी।

अगर हम डेरिवेटिव सौदों में फिजिकल सेटलमेंट की व्यवस्था लागू कर दें तो बदला सिस्टम के दौर की तरह अमीर भारतीयों का धन बाजार में आने लगेगा। ऑपरेटरों व एफआईआई के लिए स्टॉक्स को डेरिवेटिव्स के दम पर अपनी अंगुली पर नचाना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि कैश बाजार में भी उसी के अनुपात में खरीदार खड़े हो जाएंगे। बेचनेवाला अगर डिलीवरी का इंतजाम करके नहीं रखेगा तो नीलामी की ऊंची कीमतों या अधिक उधार लागत के चलते उसका औसत बिक्री मूल्य बिगड़ सकता है। इसलिए वह भी अंधाधुंध शॉर्ट करने से बचेगा। अभी तो अपने यहां सट्टेबाज़ी नहीं, शुद्ध रूप से जुएबाज़ी चल रही है।

इसे दुरुस्त करने में सरकार का भी फायदा है। अभी जिस तरह रिटेल निवेशकों के अभाव में उसे नीलामी के लिए बड़े व बाहरी निवेशकों का मोहताज होना पड़ रहा है, वह नहीं होगा। उसे टैक्स के रूप राजस्व भी ज्यादा मिलेगा। हां, इससे एफआईआई और ऑपरेटरों को जरूर नुकसान होगा। साल 2001 में संयुक्त संसदीय समिति (जेपीपी) ने केतन पारेख के घोटाले के बाद डेरिवेटिव सौदों में फिजिकल सेटलमेंट लागू करने की सिफारिश की थी। सेबी ने 2010 में स्टॉक एक्सचेंजों को ऐसा करने को कहा। लेकिन सबसे ज्यादा वोल्यूम वाला एनएसई न जाने किन कारणों से ऐसा करने से कतरा रहा है। बीएसई ने एक साल पहले फरवरी 2011 में ऐसा कर दिया। धीरे-धीरे अब इसका असर नजर आने लगा है। 8 फरवरी 2012 बीएसई में डेरिवेटिव सौदों का वोल्यूम 12,490.63 करोड़ रुपए था। हफ्ते भर बाद 15 फरवरी को यह 51,480.24 करोड़ रुपए के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। आशा है कि बीएसई की पहल का असर आगे यूं ही बढ़ता जाएगा।

आगे की बात करें तो 16 मार्च को पेश होनेवाले आम बजट में कारों पर सर्विस टैक्स के साथ-साथ एक्साइज ड्यूटी भी बढ़ाई जा सकती है। ऐसा होने पर बाजार पर नकारात्मक असर पड़ेगा। मुद्रास्फीति बढ़ने के डर से रिजर्व बैंक ने 15 मार्च को ब्याज दरों में कटौती नहीं की, तब भी बाजार मायूस हो जाएगा। नए वित्त वर्ष 2012-13 में चमक के लिए जैसा सुधार चाहिए, वैसा प्रमुख उद्योग क्षेत्रों में नहीं नजर आ रहा। केवल सीमेंट सेक्टर में चहक दिख रही है। इंफ्रास्ट्रक्टर व ऑटो सेक्टर दबे पड़े हैं तो स्टील भी उठता नहीं दिख रहा। बैंक भी तरलता संकट और खराब ऋणों के बढ़ते बोझ से ग्रस्त हैं। ऐसे में हमारी धारणा है कि सेंसेक्स के 18,290 के स्तर पर बाजार काफी महंगा है।

ऐसे में पूरे आसार इस बात के हैं कि बजट के बाद बाजार में गिरावट का दौर शुरू हो सकता है। बजट आने में महीने भर से भी कम का वक्त बचा है। इसलिए हमें काफी सतर्कता व सावधानी से निवेश या ट्रेडिंग के फैसले लेने होंगे। जनवरी से अब तक करीब 18 फीसदी बढ़ चुके बाजार में कभी भी करेक्शन आ सकता है। इस बार गिरेगा तो यहां से कम से कम 10 फीसदी नीचे जा सकता है। दिमाग के किसी कोने में इस आकलन के साथ ही बाजार का रुख करें, यही मेरी नेक सलाह है।

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