अनिश्चितता के बीच दस दिन शांति!

शेयर बाज़ार कठिन दौर से गुजर रहा है। भारी अनिश्चितता है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम इसे और बढ़ा सकते हैं। शेयरों की चाल दिशाहीन है। मजबूत शेयर गिरने पर खरीदो तब भी गिर जाते हैं। ऐसे में ट्रेडिंग में कुछ दिन का विराम ज़रूरी हो गया। इसे देखते हुए सोमवार, 26 नवंबर से दस दिन की विपश्यना साधना पर जा रहा हूं। इसलिए अगला कॉलम सोमवार, 10 दिसंबर को आएगा। कल 25 नवंबर के बाद सीधे 9 दिसंबर का ‘तथास्तु’ आएगा। बीच में 2 दिसंबर का कॉलम नहीं आएगा।

[हम आपकी बचत की कीमत समझते हैं। इसलिए आश्वस्त रहिए कि हम इस दौरान आपका कोई नुकसान नहीं होने देंगे। जो भी सब्सक्राइबर हैं, उनका सब्सक्रिप्शन बढ़ा दिया जाएगा। ट्रेडिंग बुद्ध के सब्सक्राइबरों का दस दिन और तथास्तु के सब्सक्राइबरों का एक सप्ताह।]

आप लोग इस दौरान प्रेक्षक बनकर बाज़ार को देख सकते हैं। लेकिन उसमें ट्रेडिंग करना बहुत रिस्की है। ऐसे माहौल में मन को बहुत शांत रखना बहुत ज़रूरी है। पानी जितना शांत होगा, उसमें तस्वीर उतनी ही साफ दिखती है। चंचल पानी में कोई भी आकृति साफ नहीं दिखती। गौतम बुद्ध द्वारा करीब ढाई हज़ार साल पहले खोज निकाली गई विपश्यना साधना हमारी ऐसी ही सांस्कृतिक धरोधर है जो मन को शांत व काबू में रखना सिखाती है। भगवतगीता स्थितप्रज्ञ होने की खूबियां गिनाती है। लेकिन स्थितप्रज्ञ कैसे बना जाए, यह नहीं सिखाती। विपश्यना स्थितप्रज्ञ बनने की विद्या सिखाती है।

यह विद्या गौतम बुद्ध के निधन के करीब तीन सौ साल भारत से गायब हो गई थी। म्यांमार में जन्मे व पले-बढ़े भारतीय मूल के उद्योगपति एस.एन. गोयनका साल 1669 में इसे भारत वापस ले आए। धीरे-धीरे आम भारतीय इसकी उपयोगिता से परिचित हो रहे हैं और धर्म या धम्म के व्यावहारिक स्वरूप को समझ रहे हैं। इसमें कोई मंत्र-तंत्र या श्लोक नहीं है। केवल अपनी शरीर, मन और संवेदनाओं की हर पल होती हलचलों को समभाव से देखना पड़ता है। धीरे-धीरे इसके अभ्यास से आप तमाम पूर्वाग्रहों से मुक्त होने लगते हो और जो जैसा है, उसे वैसा ही देखने की दृष्टि हासिल कर लेते हो। आप लोगों को भी अपने आसपास के किसी केंद्र में जाकर दस दिनों की यह साधना करनी चाहिए। यह सुविधा पूरी तरह निःशुल्क है। हालांकि श्री श्री रविशंकर आचार्य गोयनका से सीखकर इसी विद्या के आधार पर ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ का व्यापार करने लगे हैं।

अगर आपको शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग से कमाना है तो एक बात गांठ बांध लें कि इसका सूत्र कहीं बाहर नहीं, बल्कि खुद आपके पास है। यह भी ध्यान रखें कि शेयर बाज़ार समेत किसी भी वित्तीय बाज़ार की ट्रेडिंग पूरा तरह ज़ीरो-सम गेम है। यहां कोई गंवाता है, तभी कोई कमाता है। इसलिए हर दिन जितने लोग दुखी रहते हैं, उतने ही लोग खुश रहते हैं। ऐसा नहीं कि यहां हर कोई बढ़ने पर ही कमाता है। बहुत-से ऐसे लोग हैं जो बाज़ार के गिरने पर कमाते हैं। दरअसल, गिरने पर कमानेवाले लोग ज्यादा ही कमाते हैं क्योंकि वे डेरिवेटिव्स में शॉर्टसेल करते हैं।

वैसे, संख्या के लिहाज़ से देखें तो शेयर बाज़ार में गंवानेवालों की संख्या बहुत ज्यादा है, जबकि कमानेवालों की संख्या बेहद कम। हालांकि हर दिन नुकसान और फायदे की रकम ठीक बराबर होती है। मोटा आंकड़ा है कि शेयर बाज़ार में 95% लोग गंवाते हैं, जबकि मात्र 5% कमाते हैं। गंवानेवालों में अधिकांश रिटेल व नौसिखिया ट्रेडर होते हैं, जबकि कमानेवालों में ज्यादातर बैंक, वित्तीय संस्थाएं और प्रोफेशनल ट्रेडर हैं।

बाज़ार में जो लोग गंवाते हैं, ऐसा नहीं है कि उनमें जिजीविसा की कोई कमी है। वे जीतने की हर विद्या सीखते हैं। टेक्निकल एनालिसिस और फिबोनाकी संख्याओं के जटिल समीकरण समझने के लिए इंटरनेट से लेकर किताबों तक की थाह लगा डालते हैं। हर तरफ गुरु तलाशते रहते हैं। लेकिन बाज़ी हाथ से फिसलती रहती है। उनके लिए कबीरदास का यह दोहा पूरा प्रासंगिक है कि पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़य सो पंडित होय।

आखिर शेयर बाज़ार में सफलता का ‘ढाई आखर’ क्या है? यह कस्तूरी खुद आपके पास है। इसे बाहर ढूढना खुद को धोखा देना है। पहले जिन शेयरों में ट्रेड करना है, उनका स्वभाव समझिए। यह समझने में उनके भावों का पैटर्न राह दिखाएगा। पूंजी आपकी लगी है तो ट्रेड का रिस्क जितना आप समझ सकते हैं, उतना कोई दूसरा नहीं। यहीं से न्यूनतम रिस्क में अधिकतम रिटर्न का सूत्र पकड़ में आने लगेगा।

लेकिन इससे पहले आपको अपने धन को अनुशासन में बांधना पड़ेगा। पहली बात यह है कि सारे खर्चों व ज़रूरी बचत के बाद जो इफरात धन बचे उसे ही शेयर बाज़ार में लगाना चाहिए। कुछ नहीं बचे तो जबरन किसी लालच में आकर शेयर बाज़ार में धन नहीं लगाना चाहिए। इफरात धन में का भी 95 प्रतिशत हिस्सा शेयर बाज़ार में लंबे समय के निवेश में लगाना चाहिए और केवल 5 प्रतिशत हिस्सा ही ट्रेडिंग में लगाना चाहिए। ट्रेडिंग में हमेशा ‘दो प्रतिशत और छह प्रतिशत’ के नियम का पालन करें। साथ ही अपनी बरबादी का परवाना खुद काटने से बचें।

नमस्कार। अगली मुलाकात आपसे इसी कॉलम में सोमवार 10 दिसंबर 2018 को होगी। तब तक अपना ख्याल रखें।

भवतु सब्ब मंगलम्। सबका मंगल हो, सबका कल्याण हो, सबकी स्वस्ति मुक्ति हो।

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