गुजरात में भी विधायक काटते सेवा का मेवा, 5 साल में 231% बढ़ी संपत्ति

देश की राजनीति में सेवा भाव कब का खत्म हो चुका है। वो विशुद्ध रूप से धंधा बन चुकी है, वह भी जनधन की लूट का। इसे एक बार फिर साबित किया है गुजरात विधानसभा के नवनिर्वाचित सदस्यों ने। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) की तरफ से सजाए गए आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक राज्य की नई विधानसभा में 99 विधायक ऐसे हैं जो 2007 में भी विधायक थे। इनकी औसत संपत्ति बीते पांच सालों में 2.20 करोड़ रुपए से 231 फीसदी बढ़कर 7.28 करोड़ रुपए हो गई है। यही नहीं, नई विधानसभा के 182 में से 134 विधायक करोड़पति (74 फीसदी) हैं, जबकि 2007 में करोड़पति विधायकों की संख्या 57 (31 फीसदी) है। इनमें से तीन सबसे अमीर विधायक कांग्रेस के हैं।

बीते पांच सालों में गुजरात विधानसभा में अपराधियों की संख्या भी बढ़ गई है। 2007 में 47 विधायकों (26 फीसदी) ने चुनाव आयोग के पास दाखिल शपथपत्र में अपने खिलाफ संगीन आपराधिक मामले दर्ज होने की जानकारी दी थी। इस बार ऐसे विधायकों की संख्या 57 (31 फीसदी) हो गई है। इनमें से एक विधायक सेहरा सीट से जीते बीजेपी के जेठाभाई अहीर हैं जिन पर बलात्कार का आरोप है। बीजेपी के सहयोगी दल जेडी (यू) के वासवा छोटूभाई अमरसिंग ने घोषित किया है कि उनके खिलाफ डकैती के नौ, चोरी के सात और हत्या के तीन मुकदमे चल रहे हैं। टाटला से चुने गए कांग्रेस विधायक बराद जेसुभाई धनभाई के खिलाफ हत्या के प्रयास का एक मामला दर्ज है।

आंकड़ों से यह भी साबित होता है कि दौलत बढ़ाने के लिए सत्ता में शामिल होना या मंत्री बनना जरूरी नहीं होता। 2007 से 2012 के दौरान सबसे ज्यादा संपत्ति मानवदर के कांग्रेस विधायक जवाहरभाई पेठाळाभाई चवडा की बढ़ी है। 2007 में उनकी घोषित संपत्ति 18.32 करोड़ रुपए की थी। यह 2012 तक 64.58 करोड़ बढ़कर 82.90 करोड़ रुपए हो गई है। इसी तरह पादरा के बीजेपी विधायक दिनेशभाई बालुभाई पटेल की संपत्ति 2007 से 2012 के बीच 32.27 करोड़ बढ़कर 2.37 करोड़ रुपए से 34.64 करोड़ रुपए हो गई है। बीते पांच सालों में बीजेपी के विधायक जयंतीभाई रामजीभाई कावडिया की संपत्ति की संपत्ति 5525 फीसदी बढ़ी है। 2007 में धरंगधरा के इस विधायक की घोषित संपत्ति मात्र 10.50 लाख रुपए थी, जबकि 2012 में इनकी घोषित संपत्ति 5.91 करोड़ रुपए हो गई है।

एडीआर की पूरी रिपोर्ट में और भी तमाम दिलचस्प तथ्य पेश किए गए हैं। इनका सार यही है कि मुख्य राजनीतिक पार्टियों में शुचिता या सेवा भाव की कोई जगह नहीं बची है। संसदीय राजनीति में विधायक या सांसद भले ही जनता के बहुमत द्वारा चुने जाते हों, लेकिन उनमें से ज्यादातर जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करते। निहित स्वार्थों का जमावड़ा बन गई राजनीति। न तो बीजेपी इसका अपवाद और न ही नरेंद्र मोदी। हम भी इन नेताओं को अपने नुमाइंदे के रूप में नहीं, बल्कि आका के रूप में देखते हैं। तभी तो जो जितना बड़ा गॉडफादर है, वो उतना ही लोकप्रिय नेता है। भले ही वह मुंह से ‘राम’ की बड़ी-बड़ी बातें करे, हर काम से पहले मां का आशीर्वाद लेकर उसके फोटो छपवाए, लेकिन अपने इर्दगिर्द उभरते किसी भी नेता (संदर्भ हरेन पंड्या) पर ‘छुरी’ चलवाने में पल भर की भी देर नहीं करता। राजनीति का यह चरित्र न तो देश की राजनीति के लिए शुभ है और न ही अर्थनीति के लिए। आज के दौर में लोक की भागीदारी के बिना हर विकास खोखला है। ऐसा विकास अस्थाई है और कभी भी धराशाई हो सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *