हाय हसन! हाय हसन! अली-अली, गली-गली

हसन अली पुणे महाराष्ट्र का रहनेवाला वो शख्स है जिसका घोषित धंधा घुड़दौड़ का है। मुंबई में महालक्ष्मी रेसकोर्स का वह ख्यात-कुख्यात बिजनेसमैन है। लेकिन हकीकत में वह हमारे राजनेताओं और रसूखदार लोगों के लिए ऐसा घोड़ा है जिसकी पीठ पर सवार होकर इन्होंने अपनी अवैध कमाई स्विस बैंकों के गोपनीय खातों तक पहुंचाई है। आयकर विभाग हसन अली से पेनाल्टी समेत एक लाख करोड़ रुपए की मांग करनेवाला है, जिसमें 72,000 करोड़ रुपए चुराए गए टैक्स के और बाकी रकम पेनाल्टी की है।

बताते हैं कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से हुई पूछताछ में हसन अली ने बहुत से रहस्यों को बेपरदा किया है। उसने ईडी को कुछ मुख्यमंत्रियों और उप-मुख्यमंत्रियों तक के नाम बताए हैं। लेकिन पूछताछ से संबंधित सीडी लीक होकर बाहर आ गई तो महाराष्ट्र सरकार ने एक डीसीपी अशोक देशभ्रतार को ही नौकरी से बरखास्त कर दिया। शक की सुई एनसीपी प्रमुख शरद पवार पर जाए, इससे पहले ही उनकी पार्टी के प्रतिनिधि और महाराष्ट्र सरकार के गृह मंत्री आर आर पाटिल ने सफाई दे डाली कि इसमें शरद साहिब के शामिल होने की कोई गुंजाइश नहीं है।

खैर, हसन अली की सीडी में कुछ ऐसी बातें हैं जो दर्शाती हैं कि कैसे ताकतवर लोगों ने उसकी सेवाएं ली हैं। यहां हम उसका खुलासा उसकी ही जुबान में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन ध्यान रहे, यह ठीक-ठीक ऐसा ही रहा होगा, इसकी गारंटी नहीं है क्योंकि इसे यहां-वहां से जोड़कर तैयार किया गया है। लेकिन इससे हसन अली की हकीकत की एक झलक जरूर मिल सकती है। तो सुनिए – हसन अली की कहानी, उसी की जुबानी…

मेरा नाम खान है, और मेरे पास 8 अरब डॉलर नहीं हैं। और, मैं आतंकवादी कतई नहीं हूं। मैंने बस इतना किया कि जिनके पास खूब सारा माल है उन्हें मैंने अपना नाम इस्तेमाल करने दिया। ऐसे लोगों को बिना दुनिया को बताए कि वे कितने अमीर हैं, अपना धन बाहर ले जाना था तो मेरे जेसे लोग उनके बड़े काम के होते हैं। अच्छा-खासा कमीशन लेकर मैंने उन्हें स्विस बैंकों में खाता खोलने के लिए अपना नाम और पता इस्तेमाल करने दिया।

ये स्विस बैंक असल में शेख्सपियर की कहानी मर्चेंट ऑफ वेनिस के भयंकर सूदखोर चरित्र शाइलॉक से भी बदतर हैं। जैसे ही इन्हें अंदाज लगता है कि यह पैसा अवैध किस्म का है, वे अपनी फीस तिगुनी कर देते हैं। उनका एक अधिकारी अपने कुछ सहकर्मियों के साथ इस समय मुंबई आया हुआ है। कमाल की बात है कि आंखों की पुतलियों को रंचमात्र भी झपकाए बिना वे सरकारी अमले को बता रहे हैं कि उनके बैंक का मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। इतना बड़ा झूठ बोलते वक्त उनके चेहरे पर शिकन तक नहीं आती।

मैंने अपने पीछे पड़े ईडी के अधिकारियों को साफ बता दिया है कि ये सारा अवैध धन अकेले मैंने नहीं हैंडल किया है। तकनीकी रूप से यह एकदम सच है। इस कैश के पहाड़ को वास्तव में हवाला ऑपेरटरों ने हैंडल किया है। और, क्या गजब की महारत है उनकी! एक समय मैंने सोचा कि मैं बस इतना कहकर बच जाऊंगा कि मैं सचमुच नहीं जानता कि मेरे नाम पर कौन-कौन से लोग स्विस बैंक में खाते चला रहे थे और इन खातों में इतना सारा धन कैसे पहुंचा। लेकिन मुझे लगता है कि इसके लिए अब काफी देर हो चुकी है।

आज जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं तो मुझे अहसास होता है कि मुझे कहां चूक हो गई। मैं असल में हद से बाहर चला गया। मुझे केवल एक क्लाएंट तक सीमित रहना चाहिए था। मेरा पहला क्लाएंट महाराष्ट्र का एक ताकतवर राजनेता था जिसके पास खुद को, अपने पैसे को और मुझे बचाने का पर्याप्त दमखम था। लेकिन पहला ही सौदा अविश्वसनीय रूप से इतना सीधा-सरल था कि आसान तरीके से नोट बनाने के इस धंधे में मैं धंसता ही चला गया। अब तक कार रेंटल से लेकर तमाम धंधों में मैं नाकाम रहा था। लेकिन यह धंधा मुझे समझ में आने लगा और मुझे इसका चस्का लग गया।

जल्दी ही मैं उन लोगों को भी अपनी सेवाएं देने लगा जो सीधे हवाला ऑपरेटरों तक नहीं पहुंच सकते थे। इनमें दूसरे राज्यों के नेतागण, बिजनेसमैन और यहां तक कि बॉलीवुड की कुल हस्तियां भी शांमिल थीं। जिंदगी एकदम भली-चंगी चल रही थी। इस दरम्यान मैंने काले धन की इस अंधेरी दुनिया के तमाम लोगों ने दोस्ती गांठ ली थी। स्विटजरलैंड में मेरा एक बिजनेस एसोसिएट था जिससे मुझे बराबर डील करना पड़ता था। लेकिन जैसा कि अक्सर ऐसी कहानियों में होता है, अचानक ऐसा कुछ हो गया कि सारा मामला पलट गया।

स्विटजरलैंड के एसोसिएट से मेरा झगड़ा हो गया। रिश्ता कड़वाहट से बढ़ता-बढ़ता दुश्मनी तक जा पहुंचा। मेरे पहले क्लाएंट में मुझसे कहा कि लफड़ा सुलटा लो। मैंने कोशिश भी की। 2006-07 में मैंने उसे अपनी सालाना दावत का न्यौता भेज दिया। वह मेरा न्यौता स्वीकार कर स्विटजरलैंड से भारत आ पहुंचा तो उसे देखकर मुझे बड़ी खुशी हुई। मुझे लगा कि सारी दुश्मनी अब फिर से याराने में बदल जाएगी। मुझे जरा-सा भी इलहाम नहीं था कि वह असल में क्या करने आया है।

उस शाम दावत के मौके पर हर कोई मौज-मस्ती कर रहा था। तभी उसने चुपचाप जाकर मेरे एक कमरे में कुछ कागज डाल दिए। एक दिन बाद आयकर विभाग के अधिकारियों ने मेरे घर छापा मारा। उन्हे पता था कि असली कागज कहां किस कमरे में मिलेंगे। वे सीधे वहीं पहुंचे और बैंक स्टेटमेंट जैसे दिखनेवाले कागजों को अपने कब्जे में कर लिया। इनमें से एक कागज पर लिखा था कि स्विस बैंक खाते में मेरे पास 8 अरब डॉलर हैं। यह स्टेटमेंट जाली था, जिसकी तस्दीक अब स्विस बैंक भी कर चुका है। चैनलों से लेकर अखबारों तक ने इस मामले को उछाला। लेकिन कुछ महीनों तक सनसनी फैलाने के बाद उनकी दिलचस्पी खत्म हो गई।

चार सालों के बाद यह मामला फिर से उभरा है। मुझे नहीं पता कि ऐसा क्यों और कैसे हुआ। फिलहाल तो मैं जैसे किसी आपसी गोलीबारी में फंस गया हूं। मेरे ताकतवर क्लाएंट एक दूसरे से भिड़े हुए हैं। इस बीच मैंने प्रोफेशनल मदद लेने की कोशिश की। एक प्रोफेशनल को मैंने उस स्विस बैंक खाते के बारे में बताया जिसमें 60,000 डॉलर रखे हैं। लेकिन मैं बहुत डर गया कि उसे स्विस बैंक के 13 अन्य खातों और नौ दूसरे विदेशी बैंकों के खातों के बारे में बताऊं कि नहीं।

फिर मैंने सोचा कि अगर मैं कानूनी रास्ता अपना लूं तो शायद बात बन जाए। मैं साबित कर सकता हूं कि मेरे स्विस बैंक खाते में उतनी रकम नहीं है जितने का हल्ला पूरी दुनिया में मचा हुआ है। तब आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारी मुझे तंग करना बंद कर देंगे। लेकिन मैं गलत निकला। स्विस बैंक का मेरा खाता तो एक छलावा है, बहाना है। इसके जरिए वे मुझ तक नहीं, बल्कि मेरे क्लाएंट्स तक पहुंचना चाहते हैं।

मेरे बारे में तमाम बातें लिखनेवाले ये अखबार नहीं जानते कि मैं तो एक अदना-सा शख्स हूं और मेरे जैसे सैकड़ों लोग दिल्ली, मुंबई और हैदराबाद में फैले हुए हैं। इनमें से कुछ का अतीत मेरे जैसा दागी है, जबकि बहुत सारे क्वालिफाइड चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं। वे खुद को बहुत चालाक समझते हैं। उन्हें होश ही नहीं है कि अपनी कारगुजारियों के कितने निशान वे अपने पीछे छोड़ गए हैं। क्या मुझे उनके बारे में बात करनी चाहिए? क्या मुझे अपने क्लाएंट्स के बारे में बात करनी चाहिए? या क्या मुझे लंदन के उस हवाला सिंडिकेट के बारे में बात करनी चाहिए जो किसी बड़े बैंक की तरह काम करता है? यकीनन, इससे अखबारों व चैनलों को जबरदस्त मसाला मिल जाएगा। लेकिन क्या इससे मेरा भला हो पाएगा? मुझे इसका यकीन नहीं है।

आधार: सुगता घोष की एक रिपोर्ट

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