रिजर्व बैंक ने सारी उम्मीदों पर पानी फेरा, ब्याज न घटने से बाजार पस्त

जब आर्थिक विकास दर घटकर 5.3 फीसदी पर आ गई हो, अप्रैल के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईआई) में महज 0.1 फीसदी बढ़त दर्ज की गई हो और निवेश जगत में हर तरफ मायूसी का आलम हो, तब अगर 23 में से 17 अर्थशास्त्री मान रहे थे कि रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की पहली मध्य-तिमाही समीक्षा में रेपो दर में चौथाई फीसदी कमी (8 फीसदी से 7.75 फीसदी) कर देगा तो उनका मानना कोई नाजायज नहीं था। लेकिन रिजर्व बैंक ने ऐसा कुछ भी नहीं किया। सोमवार को सुबह 11 बजे रिजर्व बैंक का यह रुख उजागर होते ही शेयर बाजार धड़ाम से नीचे आ गया।

रिजर्व बैंक के न तो रेपो दर (बैंकों को चलनिधि समायोजन सुविधा या एलएएफ के तहत हर दिन दिए जानेवाले उधार की ब्याज दर) में कोई कमी की है और न ही सीआरआर को काटा है। फिलहाल रेपो दर 8 फीसदी और सीआरआर या बैंकों द्वारा अपनी जमा में से रिजर्व बैंक के पास रखे जानेवाले नकद का अनुपात 4.75 फीसदी पर जस का तस बना हुआ है। इससे ब्याज दर में किसी भी कमी की गुंजाइश खत्म हो गई है। बैंकों का कहना है कि रेपो दर भी घट भी जाती, तब भी उन्हें ब्याज दर घटाने में मुश्किल आती। ब्याज दर में कमी के लिए सीआरआर में कटौती जरूरी थी। लेकिन ऐसा कोई भी कदम रिजर्व बैंक ने नहीं उठाया है।

असल में, इस समय बैंकों का ऋण-जमा अनुपात 76.77 फीसदी है। रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों के अनुसार, 1 जून 2012 तक उनके द्वारा दिए गए कुल ऋण 4,71,290 करोड़ रुपए के थे, जबकि उनके पास कुल जमाराशि 6,13,777 करोड़ रुपए की थी। बैंकों को अपनी कुल जमा का 24 फीसदी हिस्सा वैधानिक तरलता अनुपात (एसएलआर) के चलते सरकारी बांडों में लगाकर रखना पड़ता है। साथ ही बतौर सीआरआर (नकद आरक्षित अनुपात) 4.75 फीसदी जमा रिजर्व बैंक के पास नकद रखनी पड़ती है। जाहिरा तौर पर बैंकों के सामने ज्यादा से ज्यादा जमाराशि खींचने की मजबूरी है।

ऐसे में वे ब्याज दर में कटौती से लगातार बच रहे हैं। देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई के चेयरमैन प्रतीप चौधरी का कहना है कि रेपो और ब्याज दर में कमी के बीच का अंतर्संबंध इस समय बहुत कमजोर हो चला है। शायद यही वजह है कि अप्रैल में रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर को आधा फीसदी हटाकर 8.50 फीसदी से 8 फीसदी कर देने के बावजूद आईसीआईसीआई बैंक जैसे तमाम बैंकों ने अभी तक होम लोन की फ्लोटिंग ब्याज दरों में कोई कमी नहीं की है।

रिजर्व बैंक ने सोमवार को चालू वित्त वर्ष 2012-13 की पहली मध्य-तिमाही समीक्षा में कहा है कि इस वक्त ब्याज दरों में कमी की कोई जरूरत नहीं है। उनका कहना है कि बैंकों की वास्तविक प्रभावी ब्याज (यानी मुद्रास्फीति को मिलाने के बाद) इस समय 2003-08 के ऊंची विकास दर के दौर से भी कम चल रही है। इसका मतलब यह हुआ कि ब्याज दरों के अलावा दूसरे कारक हैं जो विकास के धीमेपन की अहम वजह हैं। साथ ही पिछले कुछ महीनों में रुपए में आई कमजोरी से भारतीय उत्पादकों के माल विदेशी बाजार में सस्ते हो गए हैं। इससे आखिरकार भारतीय निर्यात बढ़ेगा और आयात में कमी आएगी।

रिजर्व बैंक का मानना है कि मुद्रास्फीति अब भी चिंता का प्रमुख मुद्दा है। उसका कहना है कि थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित मुद्रास्फीति की दर सितंबर 2011 के 10 फीसदी के शिखर से घटकर मार्च 2012 में 7.7 फीसदी पर आ गई। लेकिन फिर अप्रैल के 7.2 फीसदी के स्तर से बढ़कर यह मई में 7.6 फीसदी हो गई है। इसकी मुख्य वजह खाद्य वस्तुओं की महंगाई है। इस बार मानसून में खराबी इस संतुलन को और बिगाड़ सकती है।

तरलता की हालत पर रिजर्व बैंक का कहना है कि इसकी कोई दिक्कत सिस्टम में नहीं है। इसीलिए सीआरआर को उसने नहीं घटाया। वह फिलहाल बाजार से सरकारी बांडों को खरीदकर या ओएमओ (ओपन मार्केट ऑपरेशंस) के जरिए नकदी डालता रहेगा। साथ ही एक्सपोर्ट क्रेडिट रिफाइनेंस की सीमा 15 फीसदी से बढ़ाकर 50 फीसदी कर दी गई है। यह कदम 30,000 करोड़ रुपए से ज्यादा की अतिरिक्त तरलता उपबल्ध करा देगा जो सीआरआर में करीब 0.50 फीसदी की कटौती के बराबर है।

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