रेप्रो इंडिया: महंगा नहीं, एकदम टंच

अगर हम किसी चीज को नहीं जानते तो यह हमारी अपनी सीमा है। लेकिन हर चीज को कोई न कोई तो जानता ही है और इनमें से हर अच्छी चीज वाजिब भाव भी मिलता है। कंपनियां हमारी आंखों से ओछल रहकर काम करती रहती हैं। हम अनजान रहने के कारण उनकी विकास यात्रा का फल नहीं चख पाते। लेकिन हमारे जानने या न जानने से उनकी विकास यात्रा पर कोई फर्क नहीं पड़ता। वह यात्रा सतत जारी रहती है। रेप्रो इंडिया सतत विकास की राह पर चल रही ऐसी ही कंपनी है।

उसने पिछले हफ्ते गुरुवार, 14 जुलाई को चालू वित्त वर्ष 2011-12 की पहली तिमाही के नतीजे घोषित किए हैं। इसके मुताबिक जून 2011 में खत्म तीन महीनों में उसकी आय पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 22.46 फीसदी बढ़कर 72.76 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 196.93 फीसदी बढ़कर 8.70 करोड़ रुपए हो गया। इससे पहले पूरे वित्त वर्ष 2010-11 में कंपनी ने 259.61 करोड़ रुपए की आय पर 22.79 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था।

कंपनी के पहली तिमाही के अच्छे नतीजों पर बाजार ने अच्छी प्रतिक्रिया दिखाई और 14 जुलाई को ही इसका शेयर (बीएसई – 532687, एनएसई – REPRO) 52 हफ्तों के शिखर 165.50 रुपए तक जा पहुंचा। फिलहाल थोड़ा घटकर एनएसई में 159 रुपए और बीएसई में 157.60 रुपए पर आ गया है। कंपनी का ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) वित्त वर्ष 2010-11 में 21.63 रुपए था। जून 2011 की तिमाही को शामिल करने पर उसका ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस 26.93 रुपए हो जाता है। इस तरह उसका शेयर अभी 5.85 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। शेयर की बुक वैल्यू 131.58 रुपए है जो उसके बाजार भाव 157.60 रुपए से ज्यादा कम नहीं है।

इसे देखते हुए हम सकते हैं कि बी ग्रुप का यह शेयर इस समय एकदम सही भाव पर मिल रहा है। 52 हफ्तों के शिखर के करीब होने के बावजूद न यह बहुत महंगा और न बहुत सस्ता। वैसे किसी की निगाह इस स्टॉक पर इसी साल मार्च में चली होती तो वह चार महीने के अंदर ही अपनी पूंजी दोगुनी कर चुका होता। 24 मार्च 2011 को यह शेयर अपनी तलहटी 81 रुपए पर था। वहां से 165.50 रुपए के शिखर का अंतर 104.32 फीसदी का है। पिछले तीन सालों में इसका अधिकतम पी/ई अनुपात 10.74 और न्यूनतम पी/ई अनुपात 2.28 रहा है। इसका औसत पी/ई 6 के ऊपर निकलता है।

अभी तो इस शेयर में थोडी और मुनाफावसूली चलेगी। बहुत संभव है कि गिरकर 140 रुपए तक जाए। हमें इस पर निगाह रखनी चाहिए। चाहें तो इस वक्त भी खरीद सकते हैं। लेकिन मन की तसल्ली के लिए देख लेना मुनासिब रहेगा कि यह फिलहाल कहां जा रहा है। मोटे तौर पर यही लगता है कि जिन्होंने इसे मार्च से लेकर जुलाई तक बटोरा होगा, वे अब मुनाफा काटने की फिराक में होंगे क्योंकि चार महीनों में सौ फीसदी से ज्यादा रिटर्न का लालच करना भी नहीं चाहिए। लेकिन दूरगामी निवेशकों के लिए यह बहुत ज्यादा मायने नहीं रखता। असल में यह इस लिहाज से काफी सुरक्षित व संभावनामय कंपनी है। इसका एक छोटा, पर अहम पैमाना यह है कि वह लगातार हर साल लाभांश दे रही है। 2007 में उसने दस रुपए अंकित मूल्य के शेयर पर 2 रुपए का लाभाश दिया था तो इस बार 6 रुपए का लाभांश दिया है।

रेप्रो इंडिया है तो स्मॉल कैप कंपनी। उसका बाजार पूंजीकरण महज 167 करोड़ रुपए है। लेकिन धंधा बड़ा पुख्ता है उसका। 1984 में बनी यह कंपनी मुख्यतया प्रिंटिंग व पब्लिशिंग का काम करती है। उससे काम करानेवाले कुछ बड़े नाम हैं – मैकमिलन, पियरसन, ऑक्सफोर्ड, लांगमैन, कैम्ब्रिज, मैक्ग्राहिल, विश्व बैंक व यूनिसेफ। उसका करीब 60 फीसदी धंधा निर्यात से आता है। उसके दो संयंत्र नवी मुंबई और सूरत में हैं।

पिछले ही हफ्ते उसने ब्रिटिश कंपनी मैकमिलन की भारतीय इकाई मैकमिलन पब्लिशर इंडिया लिमिटेड का अधिग्रहण कर लिया। इसके तहत मैकमिलन की चेन्नई की प्रिंटिंग प्रेस कंपनी को मिल जाएगी। दूसरे, अगले पांच सालों तक मैकमिलन शिक्षा से जुड़ी अपनी सारी किताबें रेप्रो इंडिया से छपवाएगी। इससे रेप्रो को 250 करोड़ रुपए से ज्यादा का बना-बनाया धंधा मिल जाएगा। कंपनी के वित्त निदेशक मुकेश ध्रुवे के मुताबिक, कंपनी ने अपनी विस्तार योजना करीब-करीब पूरी कर ली है। नवी मुंबई व सूरत, दोनों जगह के संयंत्रों की क्षमता अब बढ़ गई है। कंपनी को इस साल घरेलू व निर्यात व्यवसाय दोनों में ही 30 फीसदी बढ़त हासिल करने का भरोसा है। नोट करने की बात यह भी कंपनी नए जमाने के साथ चलते हुए अब ई-बुक जैसे माध्यमों को भी अपना चुकी है। वह वेब-आधारित कंटेंट व समाधान तक उपलब्ध कराती है।

कंपनी की कुल इक्विटी 10.60 करोड़ रुपए है। पब्लिक के पास इसका 31.43 फीसदी और प्रवर्तकों के पास 68.57 फीसदी हिस्सा है। एफआईआई के बतौर एशिया एडवांटेज फंड के पास इसके 5.33 फीसदी शेयर हैं। इसके कुल शेयरधारकों की संख्या 7194 है। प्रवर्तकों से इतर अन्य बड़े शेयरधारकों में दुष्यंत मेहता (1.72 फीसदी) और प्रमोद खेरा (1.47 फीसदी) शामिल हैं। कंपनी के चेयरमैन विनोद वोहरा, प्रबंध निदेशक संजीव वोहरा और कार्यकारी निदेशक राजीव वोहरा हैं। लेकिन कंपनी कोई खानदानी सफाखाना नहीं हैं। इस बात का प्रमाण यह है कि इसके 11 सदस्यीय निदेशक बोर्ड में से छह स्वतंत्र निदेशक हैं जिसमें अलक पदमसी, जे जे ईरानी, पी कृष्णमूर्ति और यू आर भट्ट जैसे बड़े नाम शामिल हैं।

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