दो लाख तक के निवेश को रिटेल माना जाए: सेबी

पूंजी बाजार नियामक संस्था, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने पब्लिक इश्यू (आईपीओ व एफपीओ) में रिटेल निवेशकों की निवेश सीमा को एक लाख रुपए से बढ़ाकर दो लाख रुपए करने की पेशकश की है। मजे की बात है कि इसके लिए उसने मुद्रास्फीति के बढ़ने का तर्क दिया है, जबकि शेयर के इश्यू मूल्य का कोई सीधा रिश्ता मुद्रास्फीति से नहीं होता। उसने इस बारे में एक बहस पत्र पेश किया है जिसमें सभी संबंधित पक्षों से 3 सितंबर तक प्रतिक्रिया मांगी गई है।

सेबी का कहना है कि इस समय लागू सीमा मार्च 2005 में बनाई गई थी, जिसमें पब्लिक इश्यू में एक लाख रुपए तक लगानेवाले को रिटेल निवेशक माना गया था। लेकिन 2005 में मुद्रास्फीति की दर 4 फीसदी थी, जो अब 12 फीसदी के आसपास पहुंच गई है। इसका मतलब यह हुआ है कि अब रिटेल निवेशक एक लाख रुपए में पहले से कम शेयर खरीद पा रहे हैं। इसलिए इस सीमा को बढ़ाकर दो लाख रुपए करने का प्रस्ताव है। लेकिन बहस पत्र में मुद्रास्फीति और शेयर के इश्यू मूल्य के बीच के रिश्ते के बारे में ज्यादा कुछ साफ नहीं किया गया है। शेयर का इश्यू मूल्य तो मर्चेंट बैंकर तय करते हैं और उसका सीधा वास्ता कंपनी के मूल्यांकन से होता है। एक ही समय एक ही उद्योग की एक कंपनी का पब्लिक इश्यू 40 रुपए पर आ सकता है और दूसरी कंपनी का 400 रुपए पर।

सेबी ने तीन पेज के इस बहस पत्र में कहा है कि मार्च 2005 से अब तक बीएसई सेंसेक्स 8000 अंक से बढ़कर 18,000 अंक पर आ चुका है। दूसरे, पूरी तरह सब्सक्राइब होनेवाले पब्लिक इश्यू में भी रिटेल निवेशकों की आवेदनों की संख्या 35,000 से 70,000 तक रहती है। रिटेल निवेशकों के लिए तय सीमा को एक लाख रुपए से बढ़ाकर दो लाख रुपए कर देने से रिटेल निवेशकों के आवेदनों की संख्या बढ़ाई जा सकती है।

ब्रोकर फर्म एसएमसी कैपिटल के इक्विटी प्रमुख जगन्नाधम तुनगुंटला का कहना है कि यह सही वक्त पर उठाया गया तार्किक कदम है। हाल के कुछ पब्लिक ऑफरों को पब्लिक से मिली ठंडी प्रतिक्रिया ने सेबी को ऐसा प्रस्ताव लाने के लिए प्रेरित किया होगा। बता दें कि इस समय किसी भी पब्लिक इश्यू में जारी किए गए शेयरों का 35 फीसदी हिस्सा रिटेल व्यक्तिगत निवेशकों को देना होता है। सेबी का कहना है कि आज की तारीख में 4000 करोड़ या 6000 करोड़ रुपए का कोई बड़ा पब्लिक इश्यू आता है तो एक लाख रुपए की मौजूदा सीमा में 35 फीसदी आवंटन पूरा करने के लिए उसे रिटेल निवेशकों के कम से कम डेढ़ से दो लाख आवेदन चाहिए होंगे, जो बेहद दूभर लक्ष्य है।

गौरतलब है कि सबसे पहले साल 2000 में रिटेल निवेशक उसे माना गया था जो फिक्स्ड मूल्य के इश्यू में दस मार्केट लॉट या बुक बिल्ड इश्यू में 1000 शेयरों तक का आवेदन करता था। लेकिन इसमें समस्या यह थी कि इश्यू मूल्य ज्यादा होने पर निवेश की राशि बढ़ जाती थी। जैसे, 995 रुपए के इश्यू मूल्य पर 9.95 लाख रुपए तक को रिटेल निवेशकों के हिस्से में गिन लिया जाता था। इसके बाद अगस्त 2003 में 50,000 रुपए तक लगानेवाले को रिटेल निवेशक माना गया। लेकिन यह सीमा काफी कम लगी तो मार्च 2005 से इसे बढ़ाकर एक लाख रुपए कर दिया गया।

दिक्कत यह है कि हाल के तमाम पब्लिक इश्युओं में रिटेल निवेशकों की श्रेणी में आए 75 फीसदी आवेदन 80,000 रुपए से लेकर एक लाख तक के हैं। वहीं गैर-संस्थागत निवेशकों की श्रेणी में 5 लाख रुपए से कम के आवेदनों की संख्या न के बराबर है। सेबी के बहस पत्र के मुताबिक इससे पता चलता है कि एक लाख रुपए से अधिक लगाने की सामर्थ्य वाले रिटेल निवेशकों के हाथ बंधे हुए हैं। न ही वे गैर-संस्थागत निवेशकों की श्रेणी में निवेश करते हैं क्योंकि वहां आवंटन की सीमा 15 फीसदी ही है।

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