इंसानों की इस दुनिया में भगवान की तलाश बड़ी रिस्की है। न जाने किस भेष में भगवान नहीं, कोई शैतान या महाठग मिल जाए! फिर, जब सब कुछ अपने ज्ञान, कर्म और नेटवर्किंग से मिलना है तो ऐसा संगीन रिस्क उठाने में फायदा ही क्या।  और भीऔर भी

मन कहता है भगत सिंह हों। बुद्धि कहती है कि मेरे घर नहीं, दूसरे के घर। बोल वचन में हम किसी से कम नहीं। लेकिन कर्म की अपेक्षा दूसरों से करते हैं। दूसरे नहीं करते तो दोष उनका। यूं ही कड़ी से कड़ी चलती जाती है और होता कुछ नहीं।और भीऔर भी

सकल पदारथ है जगमाँही, कर्महीन नर पावत नाहीं। लेकिन कर्म से पहले यह तो पता होना चाहिए कि आखिर हमें चाहिए क्या। इसके लिए ज्ञान जरूरी है। ज्ञान से हमारी दुनिया खुलकर व्यापक हो जाती है और हम सही चयन कर पाते हैं।और भीऔर भी

दुर्भाग्य कहीं आसमान से नहीं टपकता। वह तो हमारे ही कर्मों का नतीजा होता है। हां, वह अपने साथ इतनी चासनी लेकर ज़रूर आता है कि कुछ सोचे-समझे बिना हम उसके स्वागत के लिए लपक पड़ते हैं।और भीऔर भी