।।राममनोहर लोहिया।। हिंदुस्तान की भाषाएं अभी गरीब हैं। इसलिए मौजूदा दुनिया में जो कुछ तरक्की हुई, विद्या की, ज्ञान की और दूसरी बातों की, उनको अगर हासिल करना है तब एक धनी भाषा का सहारा लेना पड़ेगा। अंग्रेज़ी एक धनी भाषा भी है और साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय भाषा भी। चाहे दुर्भाग्य से ही क्यों न हो, वह अंग्रेज़ी हमको मिल गई तो उसे क्यों छोड़ दें। ये विचार हमेशा अंग्रेज़ीवालों की तरफ से सुनने को मिलते हैं। इसमेंऔरऔर भी

आज़ादी के पहले और इतने सालों बाद भी जिन हिंदुस्तानियों ने अंग्रेज़ी को अपनाया, विकास और उन्नति का हर रास्ता उनके लिए खुल गया। बाकी लोग निर्वासित हैं। अपनी माटी को दुत्कारती यह कैसी व्यवस्था है जिसे हम ढोए चले जा रहे हैं?और भीऔर भी