सुख सिर्फ मेरा
मैं नहीं, तू सही। तू नहीं, कोई और सही। सांसारिक सुख तो मैं किसी भी नाम में, किसी भी शरीर में घुस कर हासिल कर सकता हूं। लेकिन अंदर का सुख मेरा अपना है जिसे मैं चाह कर भी बांट नहीं सकता।और भीऔर भी
सबका बनने की शर्त
जब आप सबका बनना चाहते हो तो अपना सारा कुछ उसके अधीन कर देना चाहिए। ध्यान रखें कि सबका बनने की चाह और अपना कुनबा अलग चलाने की कोशिश आपको कहीं का नहीं छोड़ती।और भीऔर भी
अच्छा और अपना
चीजें पहले अच्छी लगती हैं। फिर अपनी लगती हैं। फिर, अपनी बनती हैं। पर, अच्छा लगने और अपना बनने तक का सफर सीधा-सरल नहीं होता। यह बात विचारों से लेकर लोगों तक पर लागू होती है।और भीऔर भी
परायों में अपना
अपनों में शायद ही कोई अपना मिले, जिसके नाम खुद को किया जा सके। परायों में तलाशोगे, दर-दर भटकोगे तो जरूर कोई न कोई मिल जाएगा, खुद को जिसके नाम कर निश्चिंत हो सकते हो।और भीऔर भी
अपना-पराया
कोई भी घर-परिवार, देश या समाज अपना रह गया है या नहीं, इसकी एक ही कसौटी है कि वहां आप भय-मुक्त और निश्चिंत रहते हैं कि नहीं। जो आक्रांत करता है, वह अपना कैसे हो सकता है? वह तो बेगाना ही हुआ न!और भीऔर भी
हर काम अपना
हर काम को अपना ही समझ कर करना चाहिए। पराया समझ कर करते हैं तो बोझ लगता है, किसी पर किया गया एहसान लगता है। वैसे भी सच तो यही है कि हम अपने अलावा और किसी पर एहसान नहीं करते।और भीऔर भी