हर कोई किसी न किसी रूप में बलवान है, सशक्त है। बस, हम ही हर रूप में कमजोर हैं, अशक्त हैं। ये सोच भयंकर अवसाद का लक्षण है। कोई दवा हमें इससे बाहर नहीं निकाल सकती। लड़ने का मनोबल और अपने अनोखे गुणों का भरोसा ही इसका इलाज है।और भीऔर भी

जो साफ-साफ दिखता है, उसको उल्टा देखना हमारी आदत है। हम जिस पर अंध आस्था रखते हैं, जिससे शक्ति पाने की उम्मीद करते हैं, उससे हमें कुछ नहीं मिलता। बल्कि हमारी शक्ति उसे मिल जाती है। वह शक्तिमान बन जाता है और हम दीनहीन।और भीऔर भी

कौन है जो आंखों के होते हुए भी देख नहीं पाता? वो कौन है जो कानों के रहते हुए भी सुन नहीं पाता? वो कौन है जो जुबान रहते हुए भी बोल नहीं पाता? अंदर के कृष्ण से पूछो कि अर्जुन ऐसा अशक्त क्यों है?और भीऔर भी