कौआ चले ही क्यों हंस की चाल!
2010-12-10
हालांकि बाजार का सबसे बुरा वक्त या कहिए कि राहुकाल बीत चुका है, लेकिन अब भी दो और आसान मोहरे हैं जिनके दम पर चालबाज बाजार में उठापटक पैदा कर सकते हैं। फिलहाल बाजार से ऑपरेटर की अवधारणा ही खत्म होने जा रही है। इसलिए आगे से हमें दो नई अवधारओं पर केंद्रित करने की जरूरत है – एक, मार्केट मेकर (सेबी की इजाजत मिल चुकी है, लेकिन अमल में नहीं) और दो, बाजार के चालबाज याऔरऔर भी