।।राकेश मिश्र।।* उदारवादी व्यवस्था में भारतीय राजस्व और अर्थशास्त्र के आज़ादी के पचास सालों में तैयार किए गए गहन मूलभूत सिद्धांतों और व्यवस्था के आधारभूत तत्वों को तथाकथित नए उदारवादी मानकों के अनुसार तय किया जाने लगा। यह दौर शुरू हुआ आर्थिक उदारीकरण के दूसरे चरण में 1998 के दौरान। इस दौर के अर्थशास्त्रियों की समाजशास्त्रीय समझ के अति उदारीकरण का परिणाम यह निकला कि देश में महंगाई की अवधारणा और मूल्य सूचकांक के मानक आधुनिक अर्थशास्त्रऔरऔर भी

मुंबई, सात द्वीपों पर बना शहर, देश की आर्थिक राजधानी। लेकिन भारत में अंग्रेजों का शासन शुरू होने से 96 साल पहले ही यह शहर इंग्लैंड का हो चुका था। देश में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन 1757 में प्लासी के युद्ध के बाद शुरू हुआ। लेकिन 1661 में ही इंग्लैंड के किंग चार्ल्स द्वितीय को मुंबई शहर पुर्तगाल की राजकुमारी से शादी करने के बाद राजसी दहेज के रूप में दे दिया गया था क्योंकि तबऔरऔर भी

1858 में ईस्ट इंडिया कंपनी से भारत में सत्ता की बागडोर अपने हाथों में लेते ही ब्रिटिश सरकार ने सार्वजनिक खातों के लेखा-परीक्षण की अहमियत समझ ली थी। उसने 16 नवंबर 1860 को भारत का पहला महा लेखा-परीक्षक एडमंड ड्रुमंड को बनाया था। ब्रिटिश शासन से आजादी के बाद भारत 1950 में गणराज्‍य बन गया और महा लेखा-परीक्षक का पद जारी रहा हालांकि इसका नाम बदलकर भारत का नियंत्रक एवं महा लेखा-परीक्षक (सीएजी या कैग) कर दियाऔरऔर भी