हमारे राष्ट्रीय सांख्यिकीय संगठन (एनएसओ) के तार दुनिया के तमाम संगठनों से जुड़े हुए हैं। इनमें विश्‍व बैंक, अंतरराष्‍ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ), अंतरराष्‍ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ), एशिया विकास बैंक (एडीबी), विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ), ओईसीडी के साथ ही संयुक्त राष्ट्र से जुड़े यूनेस्‍को व यूएनीडपी जैसे कई संगठन शामिल हैं। सांख्‍यिकीय और कार्यक्रम कार्यान्‍वयन मंत्रालय की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक एनएसओ मूलतः उसका सांख्यिकीय खंड है। वैसे तो इन अंतरराष्‍ट्रीय संगठनों में काम करनेऔरऔर भी

एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने कहा है कि खाद्य वस्तुओं की कीमत में वृद्धि से एशियाई देशों के 6.4 करोड़ अतिरिक्त लोग गरीबी रेखा के नीचे जा सकते हैं। इस साल अब तक एशिया के कई देशों में खाद्य वस्तुओं की कीमत में औसतन 10 फीसदी की वृद्धि हुई है। ‘ग्लोबल फूड प्राइस इनफ्लेशन एंड डेवलपिंग एशिया’ शीर्षक से जारी एडीबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि घरेलू खाद्य वस्तुओं की कीमत में 10 फीसदी कीऔरऔर भी

विश्व अर्थव्यवस्था में एशिया की स्थिति 16वीं व 17वीं सदी जैसी होने जा रही है। तब विश्व अर्थव्यवस्था में एशिया का योगदान 60 फीसदी के आसपास था। एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने अब भारत, चीन और जापान के बीच आर्थिक सहयोग में मजबूती की उम्मीद करते हुए अनुमान जताया है कि वर्ष 2050 तक दुनिया के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में एशिया का योगदान 50 फीसदी से अधिक हो जाएगा। एडीबी ने कहा कि बेहतर परिदृश्य मेंऔरऔर भी

शहरी विकास, जल संसाधन और ऊर्जा जैसे मंत्रालयों की योजना व्यवस्था में कमियों के चलते भारत को विदेशों से मिली एक लाख करोड़ रुपए की सहायता राशि का इस्तेमाल नहीं हो सका है। यह जानकारी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की संसद को दी गई ताजा रिपोर्ट में दी गई है। रिपोर्ट में कहा है, ‘‘31 मार्च 2010 तक देश को मिले विदेशी सहायता राशि में से 1,05,399 करोड़ रुपए का इस्तेमाल नहीं कर पाया है।’’ बहुपक्षीयऔरऔर भी

अपनी मुद्रा युआन को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बनाने की चीन की महत्वाकांक्षा रंग लाती नजर आ रही है। एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने गुरुवार को जारी की गई अपनी रिपोर्ट मे कहा है कि युआन बहुत तेजी से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस्तेमाल की जानेवाली मुद्रा बन सकती है और दुनिया के तमाम देश अपना विदेशी मुद्रा भंडार अमेरिकी डॉलर की जगह युआन (रेनमिंबी) में रख सकते हैं। कोलंबिया यूनिवर्सिटी के अर्थ इंस्टीट्यूट के साथ मिलकर किए गए संयुक्तऔरऔर भी