।। एस पी सिंह ।। ध्वस्त राशन प्रणाली पर खाद्य सुरक्षा विधेयक का बोझ डालने का सीधा मतलब खाद्य सब्सिडी में दोगुनी लूट है। सरकार इसी मरी राशन प्रणाली के भरोसे देश की तीन चौथाई जनता को रियायती मूल्य पर अनाज बांटने का मंसूबा पाले बैठी है, जबकि उसी के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक 60 फीसदी रियायती दर वाला गेहूं और 20 फीसदी चावल गरीबों तक पहुंचने से पहले ही लूट लिया जाता है। पिछले वित्त वर्षऔरऔर भी

उधर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने नए साल के संदेश में कहा कि पेट्रोलियम पदार्थों के दाम तर्कसंगत होने चाहिए, इधर सरकारी तेल कंपनियों ने नए साल के पहले कामकाजी दिन सोमवार से पेट्रोल के दाम प्रति लीटर 2.10 रुपए से 2.13 रुपए बढ़ाने की तैयारी कर ली है। कंपनियों का मानना है कि डॉलर के मुकाबले रुपए के कमजोर होने से कच्चा तेल महंगा हो गया है। इसलिए पेट्रोल के दाम बढ़ाना उनकी मजबूरी है। इसीऔरऔर भी

इस साल खाद्य सब्सिडी का बजट लक्ष्य 60,572 करोड़ रुपए है, जबकि 1 अप्रैल से 15 दिसंबर 2011 तक 45,125 करोड़ रुपए यानी इसका 74.5% हिस्सा बांटा जा चुका है। इससे पहले वित्त वर्ष 2009-10 में खाद्य सब्सिडी 58,242.45 करोड़ और 2010-11 में 62,929.56 करोड़ रही थी। यह सब्सिडी एफसीआई और राज्य सरकारों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत गरीबों के बीच सस्ता खाद्यान्न बेचने के लिए दी जाती है। नए खाद्य सुरक्षा विधेयक से इस सब्सिडीऔरऔर भी

कृषि, खाद्य व उपभोक्ता मामलों के मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष शरद पवार ने शुक्रवार को संसद में ऐसा बयान दिया जिससे लगता है कि अगर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के चहेते खाद्य सुरक्षा विधेयक को कानून बना दिया गया तो देश राजकोषीय घाटे के दलदल में घंस जाएगा। उन्होंने कहा कि खाद्य सुरक्षा कानून के अंतर्गत अगर गरीब परिवारों को महीने में 25 किलो अनाज दिया जाता है तो सरकार को 76720 करोड़औरऔर भी