देवी-देवताओं का काम भी दो हाथों से नहीं चलता तो इंसान की क्या बिसात! मगर हम अपने गुमान में इतने मशरूफ रहते हैं कि अपनों तक का सहयोग देख नहीं पाते। हकीकत यह है कि जब तक हम सहयोग को भाव नहीं देते, तब तक बड़े नहीं बन सकते।और भीऔर भी

अपने-आप में तो हर कोई पूर्ण है। जानवर भी पूर्ण, इंसान भी पूर्ण। ओस की बूंद तक एकदम गोल। प्रकृति ने संतुलन का नियम ही ऐसा चला रखा है। पर बाहर से देखो तो सब कुछ अपूर्ण। गुमान तोड़कर देखने पर ही यह अपूर्णता नज़र आती है।और भीऔर भी

एक हम ही तुर्रमखां नहीं हैं यह काम करनेवाले। दूसरे भी बहुत-से हैं जो इसी वक्त यह काम बड़ी शिद्दत से कर रहे होंगे। यह सोच एक तो हमारा गुमान तोड़ती है। दूसरे अकेलेपन की घबराहट भी मिटा देती है।और भीऔर भी

गुमान रहता है कि हम ये कर डालेंगे, वो कर डालेंगे। हालात से टकराकर हकीकत सामने आती है तो हम जीरो बन जाते हैं। लेकिन यही जीरो जरूरी जज्बे का साथ पाकर आपको फिर से हीरो बना सकता है।और भीऔर भी

किसी अनोखे विचार पर गुमान पालना ठीक नहीं क्योंकि हम विचार को नहीं, विचार हमें चुनता है। आइंसटाइन का नाम गिलबर्ट भी हो सकता था और गैलीलियो का अब्राहम भी। इसलिए नाम नहीं, काम से वास्ता रखो दोस्त!और भीऔर भी