धन है तो लगाया, ज़रूरत तो निकाला
जिस तरह एफडी करने का कोई नियत साल नहीं होता, सोना या ज़मीन खरीदने का कोई बंधा-बंधाया समय नहीं होता, वैसे ही शेयर बाज़ार में निवेश करने का पक्का समय नहीं होता। अतिरिक्त धन हुआ तो लगा दिया और ज़रूरत पड़ी तो निकाल लिया। दूसरे माध्यमों की तरह यह भी निवेश का एक माध्यम है। फर्क बस इतना है कि मुद्रास्फीति को मात देने की समयसिद्ध क्षमता अच्छी कंपनियों में ही होती है। अब आज का तथास्तु…औरऔर भी