तर्क का पटरा
2012-03-20
तर्क की हद तक वहीं खत्म हो जाती है, जहां तक चीजें रैखिक होती हैं। धरती को जब तक चिपटा माना जाता रहा, तब तक तर्क ही सर्वोपरि थे। लेकिन धरती के गोल होते ही तर्क का सारा पटरा हो गया।और भीऔर भी
बूंद हैं, कड़ियां हैं
2011-06-01
न तुम अंतिम हो, न वह और न ही मैं। हम सब बूंद हैं, कड़ियां हैं अनंत सागर की। यहां कुछ भी सपाट नहीं, सब गोल है। चलते-चलते आखिरकार हम वहीं पहुंच जाते हैं, जहां से यात्रा की शुरुआत की थी।और भीऔर भी
कुछ भी सीधा नहीं
2011-05-10
वजह चाहे जो भी हो, इस सृष्टि में सभी चीजें गोल हैं, सीधी नहीं। लेकिन हमारी नजरें सीधी देखती हैं। इसलिए हमारा क्षितिज हमेशा बंधा रहता है। पूरा सच देखने के लिए सतह से ऊपर उठना जरूरी है।और भीऔर भी