दुनिया ही नहीं, इस सृष्टि की हर चीज हर पल बदलती रहती है। लेकिन परिवर्तन का यह नियम अगर आप किसी आम किसान से पूछेंगे तो वो कहेगा कि ऐसा नहीं है क्योंकि उसकी दुनिया तो कभी बदलती ही नहीं। सूरज के निकलने से लेकर डूबने तक का वही चक्र। न सावन हरे, न भादो सूखे। देश के आम आदमी से पूछेंगे तो वह भी कहेगा कि हां, चीजें बदलती जरूर हैं, लेकिन बेहतर नहीं, बदतर हीऔरऔर भी

शेयरों के भाव किस हद तक ग्लोबल और किस हद तक लोकल कारकों से प्रभावित होते है, इसका तो ठीकठाक कोई पैमाना नहीं है, लेकिन इतना तय है कि आज के जमाने में कंपनियों के धंधे पर दोनों कारकों का भरपूर असर पड़ता है। इसीलिए शायद अंग्रेजी के इन दोनों शब्दों को मिलाकर नया शब्द ‘ग्लोकल’ चला दिया गया है। ये ग्लोकल असर कैसे कंपनी को कस लेते हैं, इसका एक उदाहरण है भारत की सबसे बड़ीऔरऔर भी