ठोकर अक्सर!
प्रकृति की संरचनाएं जैसी जटिल हैं, वैसी ही जटिलता हमारे भाव-संसार, विचारों की दुनिया और सामाजिक रिश्तों में भी है। जो इसे नहीं देख पाते या नज़रअंदाज़ करते हैं, वे अक्सर ठोकर खाते रहते हैं।और भीऔर भी
सजीव विचार
विचारों को बाहर से ट्रांसप्लांट नहीं किया जा सकता है। उसी तरह, जैसे हम किसी पौधे में ऊपर से फूल नहीं टांक सकते। फूल तो पौधे की जटिल संरचना के भीतर से ही निकलते हैं, कहीं से टपकते नहीं।और भीऔर भी
संघर्ष की ऊष्मा
ज़िंदगी इतनी अनिश्चित नहीं होती, दुनिया इतनी जटिल नहीं होती, लोग इतने कुटिल नहीं होते तो जीने में मज़ा ही क्या रहता! सब कुछ रूटीन, बेजान, एकदम ठंडा!! संघर्ष की ऊष्मा ही तो जीवन है।और भीऔर भी
ऑटो-पायलट मोड
यहां किसी कर्ता की जरूरत नहीं। ऑटो-पायलट मोड में है सब कुछ। आज से नहीं, जब से सृष्टि बनी, तब से। संरचनाएं जटिल होती गईं। नए भाव बनते गए। लेकिन चलता रहा ऑटो-पायलट मोड।और भीऔर भी
सीधी-सरल, पारदर्शी
चीजें तो जैसी हैं, वैसी ही रहती हैं। नियमों से बंधी, भावनाओं से रहित। सीधी-सरल, देखने की नजर हो पारदर्शी। लेकिन हमारा अहम, हमारे पूर्वाग्रह उसे जटिल बना देते हैं। रस्सी को सांप बना देते हैं।और भीऔर भी