अपने-आप में तो हर कोई पूर्ण है। जानवर भी पूर्ण, इंसान भी पूर्ण। ओस की बूंद तक एकदम गोल। प्रकृति ने संतुलन का नियम ही ऐसा चला रखा है। पर बाहर से देखो तो सब कुछ अपूर्ण। गुमान तोड़कर देखने पर ही यह अपूर्णता नज़र आती है।और भीऔर भी

सभ्य से सभ्य समाज में भी इंसान के अंदर एक जानवर बैठा रहता है। जो रिवाज इस जानवर को हवा देते हैं, उन्हें बेरहमी से खत्म कर देने की जरूरत है। परंपरा के नाम उन्हें चलाते रहना हैवानियत है।और भीऔर भी

किसी गिरते बूढ़े को उठाकर तो देखो! सड़क पर गिरे पड़े किसी घायल को अस्पताल पहुंचाकर तो देखो! घर से भागे किसी बच्चे को आसरा देकर तो देखो! जानवर से उठकर कभी इंसान बनकर तो देखो!और भीऔर भी

हर कोई आश्चर्य कर रहा है कि कैसे बाजार इतना बढ़ गया। निफ्टी 2.15 फीसदी बढ़कर 5140.20 और सेंसेक्स 2.11 फीसदी बढ़कर 17,099.28 पर जा पहुंचा। लेकिन इसमें हमारे लिए कोई चौंकने की बात नहीं थी क्योंकि हमें पता था कि भारतीय बाजार एकदम तलहटी पर पहुंच चुके हैं। ग्रीस को 76.9 करोड़ यूरो का अपना वाजिब हिस्सा मिल गया और यूरोप के बाजार 2 से 3 फीसदी बढ़ गए। ऐसे में स्वाभाविक था कि शॉर्ट केऔरऔर भी

मेहनत के बिना कहीं आसमान से कुछ नहीं टपकता। हां, जानवर या मशीन जैसे काम के दाम कम हैं। पर पढ़-लिखकर इंसानी हुनर के माफिक काम करेंगे तो दाम भी ज्यादा मिलेंगे। सीधी-सी बात है।और भीऔर भी

पशु प्रेमियों की अपील को ध्यान में रखते हुए लिप्टन ब्रांड की चाय बनानेवाली कंपनी बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनिलीवर ने चाय पर शोध के लिए जानवरों पर प्रयोगात्मक परीक्षण बंद करने की घोषणा की है। भारत में यह ब्रांड उसकी सब्सिडियरी हिंदुस्तान यूनिलीवर (एचयूएल) बेचती है। पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनीमल (पेटा) और ब्रिटेन, भारत तथा जर्मनी में उसके 40,000 से अधिक कार्यकर्ताओं ने कंपनी से चाय शोध के लिए सूअर और खरगोश जैसे जानवरों परऔरऔर भी

किसी के मान लेने से कोई गिनती नहीं बन जाता। हम में हर कोई अपने मन का राजा है। किसी से कम नहीं। शायद हर जानवर भी खुद को अनोखा समझता होगा। वैसे, हर गिनती भी तो अपने-आप में अनोखी होती है।और भीऔर भी

हम में से हर किसी में कोई न कोई जानवर छिपा बैठा है। वह सांप, गोजर, बिच्छू से लेकर ऊंट, शेर और हाथी भी हो सकता है। हम उसे पहचान लें, आत्मदर्शन कर लें तो इंसान बनना ज्यादा आसान हो जाता है।और भीऔर भी

हम यूं तो जीते हैं जानवरों की ही ज़िंदगी। उन्हीं प्रवृत्तियों के चलते दुनिया में आगे बढ़ते हैं। बस, इतना है कि समाज ने कुछ कपड़े-लत्ते पहना रखे हैं। धर्म और नैतिकता ने भ्रम पाले रखने के कुछ बहाने दे रखे हैं।और भीऔर भी