लंबे दौर में अच्छे-बुरे का लॉजिक जरूर चलता होगा, लेकिन छोटे समय में शेयर बाज़ार में केवल एक लॉजिक चलता है। वो यह कि डिमांड ज्यादा है कि सप्लाई। इसी के जुड़ा है कि लालच ज्यादा है कि डर। अगर डिमांड या लालच का पलड़ा भारी है तो शेयर के भाव बढ़ेंगे। अगर डर के चलते लोग निकल रहे हैं और सप्लाई ज्यादा है तो शेयर के भाव गिरेंगे। समझदार ट्रेडर इसी नापतौल के बाद दांव चलतेऔरऔर भी

सरकार नए निवेशकों को शेयर बाजार में खींचने के लिए बेताब है। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने राजीव गांधी इक्विटी सेविंग्स स्कीम को और आकर्षक बना दिया है। अभी तक इस स्कीम में वे लोग ही निवेश कर सकते हैं, जिनकी सालाना आय 10 लाख रुपए या इससे कम है। लेकिन नए वित्त वर्ष 2013-14 से यह सीमा बढ़ाकर 12 लाख रुपए कर दी गई है। साथ ही अभी तक नियम यह है कि इस स्कीम काऔरऔर भी

लगता है कि सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वड्रा पूरी सरकार व कांग्रेस पार्टी के दामाद बन गए हैं। वड्रा और रीयल्टी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी डीएलएफ के बीच लेनदेन की जांच से इनकार करते हुए वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि जब तक साफ तौर पर भ्रष्टाचार के कोई आरोप सामने नहीं आते, तब तक सरकार निजी सौदों की जांच नहीं कर सकती। सोमवार को राजधानी दिल्ली में आर्थिक संपादकों के सम्मेलन का उद्घाटनऔरऔर भी

देश की अर्थव्यवस्था (जीडीपी) में कृषि, वानिकी व मत्स्य-पालन का योगदान घटकर 14% से नीचे आ गया है। मैन्यूफैक्चरिंग व खनन का सम्मिलित हिस्सा 17% के आसपास है। बाकी करीब-करीब 69% भाग सेवा क्षेत्र के हवाले है। सेवा क्षेत्र में सबसे बड़ा हिस्सा व्यापार, होटल, ट्रांसपोर्ट व संचार का है। इसके बाद फाइनेंसिंग, बीमा, रीयल एस्टेट व बिजनेस सेवाओं का है। फिर नंबर सामुदायिक, सामाजिक व वैयक्तिक सेवाओं का है। इसके बाद कंस्ट्रक्शन और आखिर में बिजली,औरऔर भी

अभी तक रिजर्व बैंक के गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव अपनी अघोषित जिद पर अड़े हुए थे कि जब तक केंद्र सरकार राजकोषीय मोर्चे पर कुछ नहीं करती या दूसरे शब्दों में अपने खजाने का बंदोबस्त दुरुस्त नहीं करती, तब तक वे मौद्रिक मोर्चे पर ढील नहीं देंगे। यही वजह है कि पिछले दो सालों में 13 बार ब्याज दरें बढ़ाने के बाद रिजर्व बैंक ने इस साल अप्रैल में इसमें एकबारगी आधा फीसदी कमी करके फिर हाथ बांधऔरऔर भी

जब भी कभी रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति या उसकी समीक्षा पेश करनेवाला होता है तो उसके हफ्ते दस-दिन पहले से दो तरह की पुकार शुरू हो जाती है। बिजनेस अखबारों व चैनलों पर एक स्वर से कहा जाता है कि ब्याज दरों को घटाना जरूरी है ताकि आर्थिक विकास की दर को बढ़ाया जा सके। वहीं रिजर्व बैंक से लेकर राजनीतिक पार्टियों व आम लोगों की तरफ से कहा जाता है कि मुद्रास्फीति पर काबू पाना जरूरीऔरऔर भी

अमेरिका में ब्याज की दर इस समय 0.25% है। शायद यही वजह है कि वहां के लोग कर्ज लेकर जीने के आदी हो चुके हैं। 1972 में अमेरिका में बैंकों द्वारा बांटा गया कर्ज देश के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का 112% था। 2008 में यह 296% हो गया। उसके बाद के चार सालों में यह घटा है। लेकिन अब भी जीडीपी का 250% है। हां, अमेरिका में मुद्रास्फीति की मौजूदा दर भी मात्र 1.70% है। विकसितऔरऔर भी

भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत खराब है। उम्मीद थी कि बीते वित्त वर्ष 2011-12 की आखिरी तिमाही में अर्थव्यवस्था या जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की वृद्धि दर 6.1 फीसदी रहेगी। लेकिन केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) की तरफ से गुरुवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक देश का जीडीपी जनवरी-मार्च 2012 के दौरान मात्र 5.3 फीसदी बढ़ा है। इसे मिलाकर पूरे वित्त वर्ष 2011-12 की आर्थिक विकास दर 6.5 फीसदी पर आ गई है, जबकि फरवरी में इसका अग्रिम अनुमानऔरऔर भी

वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी का मानना है कि विश्व अर्थव्‍यवस्‍था में सुधार की गति धीमी है। 2008 में वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था में आई मंदी को सुधरने में कुछ लंबा वक्‍त लगेगा। वित्त मंत्री ने मंगलवार को उद्योग संगठन सीआईआई की सालाना आमसभा और राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए यह बात कही। उन्‍होंने कहा कि अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर नीति निर्माताओं के लिए यह सबसे कठिन चुनौतियों में से एक है। इस वैश्विक संकट से निपटने के लिए अपनेऔरऔर भी

हर कोई यही उम्मीद कर रहा था कि रिजर्व बैंक रेपो दर में बहुत हुआ तो 0.25 फीसदी कमी कर सकता है। लेकिन रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2012-13 की सालाना मौद्रिक नीति में रेपो दर में 50 आधार अंक या 0.50 फीसटी कटौती कर सबको चौंका दिया है। नतीजतन घोषणा होते ही खटाक से चार मिनट के भीतर शेयर बाजार की प्रतिक्रिया को दर्शानेवाले सेंसेक्स और निफ्टी दिन के शिखर पर पहुंच गए। रिजर्व बैंक नेऔरऔर भी