जब सारे लोग यूरोपीय देशों के डाउनग्रेड के असर और एफआईआई ब्रोकरेज हाउसों की तरफ से लगातार घटाई जा रही रेटिंग के परेशान थे और इनके आधार पर निफ्टी के 4000 तक गिरने का निष्कर्ष निकाल रहे हैं जिसका साथ मीडिया के तमाम विश्लेषक भी दे रहे थे, तब इकलौता एक शख्स था जिसका मानना था कि जनवरी में ऐसा कतई नहीं होगा। और, वह शख्स था मैं। मैंने आपको बताया था कि मेरे आकलन के हिसाबऔरऔर भी

फ्रांस के डाउनग्रेड के बाद बाजार में एक बार फिर हल्की-सी सिहरन दौड़ गई। लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था के सुधरते मूलाधार यूरोपीय कारकों को बेअसर करने के लिए काफी हैं। दिसंबर में मुद्रास्फीति की दर 7.47 फीसदी पर आ चुकी है। यह साफ संकेत इस बात का है कि ब्याज दरों में कटौती अब ज्यादा दूर नहीं है। मुद्रास्फीति की दर पर हमारा अनुमान 7.5 फीसदी से 8 फीसदी का था। वास्तविक आंकड़े का इससे कम रहना बाजारऔरऔर भी

बाजार में ज्यादा गिरने की गुंजाइश अब बची नहीं है। लेकिन हमारा बाजार इतना खोखला है कि यहां डेरिवेटिव्स के जरिए कृत्रिम स्तर बना दिए जाते हैं। यूं तो इस हफ्ते निफ्टी 4742.80 से शुरू होकर आज 4866 पर बंद हुआ। लेकिन सारी अच्छी खबरों के बावजूद इसे गिराकर 4400 से 4000 तक पहुंचा दिया जाए तो मुझे कोई अचंभा नहीं होगा। असल में अपने यहां पिछले 12 महीनों में निचले स्तरों, निफ्टी के औसतन 5000 केऔरऔर भी

आप सभी से हमारी विनम्र गुजारिश है कि बाजार के तमाम मध्यवर्तियों की तरफ से बिना वजह किए जानेवाले डाउनग्रेड व अपग्रेड को लेकर बहुत चौकन्ने रहें। जैसे, बाजार कल और आज मूडीज द्वारा भारत की विदेशी मुद्रा रेटिंग को अपग्रेड करने पर बहक गया। हकीकत यह है कि भारत सरकार के बांडों की रेटिंग मूडीज ने पिछले महीने 20 दिसंबर को ही बढ़ा दी थी। इसलिए, रुपया जब पिछले छह महीनों में डॉलर के सापेक्ष करीब-करीबऔरऔर भी

किसी भी विदेशी ब्रोकिंग हाउस का नाम ले लो, उसे भारत को डाउनग्रेड करने में कोई हिचक नहीं होती। वे खटाखट आर्थिक विकास की संभावनाओं से लेकर बाजार तक को नीचे से नीचे गिराते जा रहे हैं। ताजा उदाहरण सीएलएएसए का है। इन ब्रोकिंग हाउसों ने भारत में निवेश को, यहां की आस्तियों को रिस्की ठहरा दिया है। वजह गिनाई है मुद्रा प्रबंधन की अक्षमता, नीतिगत फैसलों में ठहराव, राजकोषीय घाटे को संभालने में नाकामी और मुद्रास्फीतिऔरऔर भी

निफ्टी के 4000 तक पहुंच जाने के अंतहीन अनुमान और भारत के अंतहीन डाउनग्रेड का सिलसिला पूरा घूम चुका है। हालांकि सेंसेक्स कंपनियों के निचले लाभार्जन का अनुमान इस सूचकांक को 11,600 पर पहुंचा देता है। मतलब यह कि सेंसेक्स अगर 11,000 पर पहुंचता है तो बाजार को 9.48 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड होना पड़ेगा। लेकिन ऐसी नौबत तो 1991 में भी नहीं आई थी, जब भारत दीवालियेपन की कगार तक पहुंच गया था। पिछले 15औरऔर भी

भारत दुनिया की खबरों पर बार-बार उठ्ठक-बैठक कर रहा है, जबकि सबसे विकट हालत में फंसे देश अमेरिका का शेयर सूचकांक, डाउ जोंस 12,000 के स्तर को कसकर पकड़े बैठा है। जब भी कभी यह 12,000 के नीचे जाता है तो फौरन रॉकेट की तरह खटाक से वापस आ जाता है। इसी तरह एस एंड पी 500 सूचकांक ने भी एक ढर्रा बना रखा है और 1250 के आसपास खुद को जमा रहा है। यह उसका ब्रेक-आउटऔरऔर भी

बाजार अनपेक्षित रूप से धराशाई हो गया क्योंकि ब्रोकरों ने एचएनआई और ऑपरेटरों की प्रॉपराइटरी पोजिशन निपटाने का फैसला कर लिया। इसके चलते आखिरी एकाध घंटे में मिड कैप स्टॉक्स में भारी बिकवाली हुई। दो बजे के बाद गहरी गिरावट का दौर शुरू हुआ तो निफ्टी 1.90 फीसदी घटकर 4934.75 पर बंद हुआ। प्रॉपराइटरी खातों को बंद करने के लिए तमाम स्टॉक्स में हुए सौदों को जबरन काटा गया। आखिरी आधे घंटे में टाइटन इंडस्ट्रीज के 6औरऔर भी

दूसरी तिमाही के कॉरपोरेट नतीजों का अंतिम दिन। करीब 515 कंपनियों के नतीजे सोमवार को आने हैं। इनमें एबीजी शिपयार्ड, अडानी एंटरप्राइसेज, अमर रेमेडीज, अरेवा टी एंड डी, अवेंतिस फार्मा, बलरामपुर चीनी, बीएचईएल, भूषण स्टील, सिप्ला, कॉक्स एंड किंग्स, डेक्कन क्रोनिकल, धामपुर शुगर, जयप्रकाश एसोसिएट्स, जेके टायर, जेएसडब्ल्यू स्टील, महिंद्रा एंड महिंद्रा, मोनसैंटो इंडिया, नाहर स्पिनिंग, ऑयल इंडिया, पटेल इंजीनियरिंग, राजेश एक्सपोर्ट्स, रुचि सोया, सबेरो ऑर्गेनिक्स, संघवी मूवर्स, टाटा पावर, टाटा मोटर्स, यूनिटेक, विविमेड लैब्स व जुआईऔरऔर भी

जो अपरिहार्य था, जिसे होना ही था, आखिरकार वही हो रहा है। भारतीय बैंकिंग सेक्टर को मूडीज ने एसबीआई के नतीजों के बाद डाउनग्रेड किया तो उसके एक दिन बाद ही स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (एस एंड पी) ने उसे अपग्रेड कर दिया। इससे कहीं न कहीं यह स्पष्ट संदेश मिलता है कि डाउनग्रेड और अपग्रेड करना ऐसे सिंडीकेट की चाल है जिसका मकसद भारतीय बाजार को अपने इशारों पर नचाना है। जो निवेशक भगवान मानकर ऐसा करनेवालों काऔरऔर भी