चप्पे-चप्पे पर कोई न कोई काबिज़ है। हर विचार किसी ब्रह्म ने नहीं, इंसान ने ही फेंके हैं और उनके पीछे किसी न किसी का स्वार्थ है। हम भी स्वार्थ से परे नहीं। ऐसे में विचारों को अगर निरपेक्ष सत्य मानते रहे तो कोई दूसरा हमें निगल जाएगा।और भीऔर भी

हम अक्सर अतीत के प्रति मोह, वर्तमान के प्रति खीझ और भविष्य के प्रति डर से भरे रहते हैं। कल, आज और कल को साधना जरूरी है। लेकिन उसके लिए हमें निर्मोही, निरपेक्ष और निडर बनना होगा।और भीऔर भी

केवल विज्ञान ही निरेपक्ष और व्यापक समाज के हित में है। बाकी महान से महान विचार भी निरपेक्ष नहीं होते। उसमें किसी का हित तो किसी का अहित होता है। यह दिखता नहीं, पर देखना जरूरी है।और भीऔर भी

इस जहान में निरपेक्ष या निष्पक्ष जैसा कुछ नहीं। यह कोई मंजिल नहीं, एक अवस्था है प्रकृति के स्वभाव के साथ एकाकार होने की। तलवार की धार पर संतुलन नहीं बन पाता तो हम इधर या उधर के हो जाते हैं।और भीऔर भी