जिस तरह लोकतंत्र में हर शख्स को बराबर माना गया है, माना जाता है कि कानून व समाज की निगाह में हर कोई समान है, उसी तरह सुसंगत बाजार के लिए जरूरी है कि उसमें हर भागीदार बराबर की हैसियत से उतरे। यहां किसी का एकाधिकार नहीं चलता। इसलिए एकाधिकार के खिलाफ कायदे-कानून बने हुए हैं। लोकतंत्र और बाजार के बीच अभिन्न रिश्ता है। लेकिन अपने यहां लोकतंत्र और बाजार की क्या स्थिति है, हम अच्छी तरहऔरऔर भी

बामर लॉरी तेल व प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अधीन काम करनेवाली सरकारी कंपनी है। हालांकि सरकार का निवेश इसमें प्रत्यक्ष नहीं, बल्कि परोक्ष रूप से है और उसे इसकी प्रवर्तक नहीं माना जाता। 1972 से भारत सरकार इसकी मालिक बनी है। अंग्रेजों के जमाने की कंपनी है। 1 फरवरी 1867 को शुरुआत कोलकाता में पार्टनरशिप फर्म के रूप में हुई। शुरुआती सालों में वो चाय लेकर शिपिंग, बीमा से लेकर बैंकिंग और ट्रेडिंग से लेकर मैन्यूफैक्चिरंग तकऔरऔर भी

वयस्क मताधिकार में हर 18 साल के नागरिक को वोट देने का हक है। उसी तरह कंपनियों के शेयरधारकों को कंपनियों के फैसलों में वोट देने का हक होता है। फर्क इतना है कि यहां शेयरों की खास श्रेणियों में मताधिकार की स्थिति बदलती रहती है। प्रेफरेंशियल शेयर का नाम आप लोगों ने सुना ही होगा। एक अन्य तरह के शेयर होते हैं डीवीआर (डिफरेंशियल वोटिंग राइट्स) शेयर। आम शेयरों में तो हर शेयर पर एक वोटऔरऔर भी

अमेरिका और यूरोप से बराबर कमजोरी की खबरें आती रहीं। भारतीय बाजार नीचे और नीचे होता रहा। दुनिया के बाजारों में गिरावट से भारतीय बाजार में घबराहट बढ़ती गई। शुक्र है कि रिटेल निवेशक अभी तक बाजार से बाहर हैं, इसलिए इस बार भुगतान का कोई संकट नहीं खड़ा हुआ। इस मायने में 2011 का सदमा 2008 के सदमे से भिन्न है। 2008 में बाजार यकीनन ओवरबॉट स्थिति में था, वह भी बड़े पैमाने पर मार्जिन याऔरऔर भी

करीब साल-सवा साल पहले हमारे चक्री महाराज इंडिया सीमेंट्स को झकझोरे पड़े थे। सीमेंट के धंधे के साथ-साथ आईपीएल की चेन्नई सुपर किंग टीम की मालिक इस कंपनी का शेयर तब 140 रुपए के आसपास चल रहा था। चक्री का दावा था, “अगले दो-तीन सालों में आईपीएल टीम के मूल्यांकन के दम पर इंडिया सीमेंट का शेयर 450 रुपए तक जा सकता है। अभी फिलहाल अगले कुछ महीनों में तो इसमें 100 रुपए के बढ़त की पूरीऔरऔर भी

नेशनल पेरॉक्साइड 1954 में बनी नुस्ली वाडिया परिवार की कंपनी है। नुस्ली के बेटे नेस वाडिया इसके चेयरमैन हैं। कंपनी कल्याण (महाराष्ट्र) की फैक्टरी में तीन रसायन बनाती है – हाइड्रोजन पेरॉक्साइड, सोडियम परबोरेट व पैरासेटिक एसिड बनाती है। लेकिन इसमें प्रमुख है हाइड्रोडन पेरॉक्साइड जिसमें देश का 40 फीसदी बाजार उसके हाथ में है। कंसोलिडेट आधार पर कंपनी वित्त वर्ष 2010-11 में कंपनी का ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) 101.23 रुपए और स्टैंड-एलोन आधार पर 100.65 रुपएऔरऔर भी

कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता। यूं ही बिना किसी बात पर कोई शेयर खाक नहीं होता। ऐसा तभी होता है जब लोग उसे बेचने पर उतारू हो जाएं। और, कोई यूं ही किसी शेयर को बेचने पर उतारू नहीं होता। उसके पीछे कुछ न कुछ ज्ञात-अज्ञात कारण, कुछ न कुछ स्वार्थ जरूर होता है। खासकर ऐसा जब किसी स्मॉल कैप कंपनी के साथ हो तो इन स्वार्थों की शिनाख्त जरूरी होऔरऔर भी

अगर हम किसी चीज को नहीं जानते तो यह हमारी अपनी सीमा है। लेकिन हर चीज को कोई न कोई तो जानता ही है और इनमें से हर अच्छी चीज वाजिब भाव भी मिलता है। कंपनियां हमारी आंखों से ओछल रहकर काम करती रहती हैं। हम अनजान रहने के कारण उनकी विकास यात्रा का फल नहीं चख पाते। लेकिन हमारे जानने या न जानने से उनकी विकास यात्रा पर कोई फर्क नहीं पड़ता। वह यात्रा सतत जारीऔरऔर भी

यूं तो हर मां को अपना काना बेटा भी सबसे खूबसूरत लगता है। लेकिन प्रवर्तक को अपनी कंपनी के बारे में ऐसा कोई भ्रम नहीं होता। असल में, प्रवर्तक से ज्यादा अपनी कंपनी की सही औकात कोई नहीं समझता। वह अंदर की सूचनाओं के आधार पर कोई खेल न कर दे, इसीलिए इनसाइडर ट्रेडिंग का नियम बना हुआ है। इसलिए प्रवर्तक अपनी कंपनी के शेयर जिस भाव पर खुद खरीद रहे हों या किसी और को बेचऔरऔर भी

करीब दस महीने हमने इसी कॉलम में आईसीआईसीआई सिक्यूटिरीज की रिसर्च रिपोर्ट के हवाले 11 अगस्त को लिखा था कि जीवीके पावर एंड इंफ्रस्ट्रक्चर के शेयर में 20 फीसदी बढ़त की पूरी गुंजाइश है। शेयर तब 43.80 रुपए पर था। ब्रोकरेज फर्म का आकलन था कि यह साल भर में आराम से 53-54 रुपए पर चला जाएगा। हालांकि वो महीने भर में 13 सितंबर 2010 को 51.45 रुपए के शिखर तक चला गया। लेकिन उसके बाद ऐसाऔरऔर भी