कानून ही लंबे समय में व्यापक सामाजिक स्वीकृति पाने के बाद नैतिकता बन जाते हैं। फिर भी नैतिकता सर्वकालिक नहीं होती। किसी नैतिक मानदंड के सही होने का एक ही पैमाना है कि वह व्यापक समाज के वर्तमान व भावी हित में है या नहीं।और भीऔर भी

व्यक्ति की नैतिकता हो सकती है। लेकिन सरकारों की कोई नैतिकता नहीं होती। सत्ता की चंडाल चौकड़ी को बचाना ही उसका चरित्र है। हां, वह अवाम की निगाह में जरूर नैतिक दिखना चाहती है।और भीऔर भी

नैतिकता की दुहाई कमजोर लोग देते हैं। धर्म, समाज व राजनीति के ठेकेदारों के लिए यह लोगों को भरमाने का एक जरिया है जिसका नाम जपते हुए वे खुद जघन्य से जघन्य काम किए जाते हैं।और भीऔर भी

नैतिकता आसमान से नहीं टपकती। मूल्य हवा से नहीं आते। सामाजिक व्यवस्था को चलाने के लिए कानून बनाए जाते हैं। यही कानून जब व्यापक स्वीकार्यता हासिल कर लेते हैं तो नैतिक मू्ल्य बन जाते हैं।और भीऔर भी

ये सही, वो गलत। ये अच्छा, वो बुरा। अनजाने में ही नैतिकता की एक तराजू लिए चलते हैं हम। एक माइंड सेट बन जाता है हमारा। लेकिन नया कुछ पाने के लिए पुराने माइंट सेट को ठोंकना-पीटना जरूरी होता है।और भीऔर भी

हम यूं तो जीते हैं जानवरों की ही ज़िंदगी। उन्हीं प्रवृत्तियों के चलते दुनिया में आगे बढ़ते हैं। बस, इतना है कि समाज ने कुछ कपड़े-लत्ते पहना रखे हैं। धर्म और नैतिकता ने भ्रम पाले रखने के कुछ बहाने दे रखे हैं।और भीऔर भी

मन शरीर के रसायनों से लेकर हार्मोंस और समाज की नैतिकताओं से लेकर पाखंडों तक का बोझ ढोता है। आगे बढ़ने के लिए सारे झाड़-झंखाड़ को काटता तराशता रहता है। इसलिए मन पर बराबर सान चढ़ाते रहना चाहिए।और भीऔर भी