बुद्ध क्यों नहीं!
बाहर से सब कुछ भरा-पूरा, अंदर से परेशान। सदियों पहले एक राजकुमार इसी उलझन को सुलझाने निकला तो बुद्ध बन गया। नया दर्शन चल पड़ा। सदियों बाद लाखों लोग सब कुछ होते हुए भी वैसे ही बेचैन हैं। लेकिन कोई बुद्ध नहीं बनता। आखिर क्यों?और भीऔर भी
डूबना और निकलना
जब तक हम किसी चीज में डूबे हैं, तभी तक उससे आक्रांत हैं। बाहर निकलते ही लगता है कि इस कदर परेशान होना गलत था। लेकिन सृजन के लिए डूबना ही पड़ता है तो समझ के लिए निकलना भी पड़ता है।और भीऔर भी
परेशां खामखां
ज़िंदगी में पुराने का जाना और नए का आना रिले रेस की तरह नहीं, समुद्र की लहरों की तरह चलता है। लेकिन हम पुरानी लहर के भीतर बन रही नई लहर को नहीं देख पाते और खामखां परेशान हो जाते हैं।और भीऔर भी