जो ठहरा वो मरा। जो चलता रहा, वही ज़िंदा है। सदियों पहले बुद्ध ने जीवन में निरतंर परिवर्तन की कुछ ऐसी ही बात कही थी। जो व्यक्ति या संस्थान समय के हिसाब से बदल नहीं पाता, वो खत्म हो जाता है। लेकिन ‘अर्थकाम’ ने तो न मिटने की कसम खा रखी है तो बनने से लेकर अब तक कई तरह के उतार-चढ़ाव देखें, झंझावात देखे। मगर, हर बार वित्तीय साक्षरता और आर्थिक सबलता के अधूरे मिशन कोऔरऔर भी