विचार किसी लता की तरह हैं जिन्हें अगर बाहर का कोई सहारा न मिले तो उनका बढ़ना रुक जाता है। इसलिए विचारों को बराबर व्यवहार के धरातल पर कसते रहना चाहिए। नहीं तो बे-काम हो जाते हैं।और भीऔर भी

विचार जब तक धारा का हिस्सा हैं, तब आप उनमें गोता लगाकर आगे से आगे बढ़ते चले जाते हैं। लेकिन विचारधारा में बंधते ही आपका बढ़ना रुक जाता है और यथार्थ आपकी मुठ्ठी से फिसलने लगता है।और भीऔर भी

हर जीव प्रकृति के साथ एक खास संतुलन में जन्मता, पलता व बढ़ता है। संतुलन न बिगड़े तो जीवन चक्र पूरा चलता है। इंसान भी चाहे तो मूल तत्वों के सही संतुलन से खुद को स्वस्थ रख सकता है।और भीऔर भी