देश के ग्रामीण अंचलों में सूद पर सूद लेने का महाजनी चलन अब भी जारी है। कई जगह तो इस काम में कांग्रेस और बीजेपी जैसी स्थापित पार्टियों के सांसद व विधायक तक लगे हुए हैं। लेकिन शहरी इलाकों में बैंक भी इस काम को बखूबी अंजाम दे रहे हैं। वे इसके लिए सूद पर सूद नहीं, चक्रवृद्धि और साधारण ब्याज के अंतर का फायदा उठाकर ग्राहकों की जेब ढीली कर रहे हैं। अभी कुछ दिनों पहलेऔरऔर भी

देश की राजनीति में सेवा भाव कब का खत्म हो चुका है। वो विशुद्ध रूप से धंधा बन चुकी है, वह भी जनधन की लूट का। इसे एक बार फिर साबित किया है गुजरात विधानसभा के नवनिर्वाचित सदस्यों ने। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) की तरफ से सजाए गए आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक राज्य की नई विधानसभा में 99 विधायक ऐसे हैं जो 2007 में भी विधायक थे। इनकी औसत संपत्ति बीते पांच सालों में 2.20 करोड़औरऔर भी

गुजरात में कुल मतदाताओं की संख्या 3.78 करोड़ है। वहां अकेले गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन या अमूल के नाम से लोकप्रिय सहकारी संस्था से जुड़े दुग्ध उत्पादक सदस्यों की संख्या 31.8 लाख है। ये 8.41 फीसदी मतदाता राज्य के 24 जिलों के 16,117 गांवों में फैले हैं। बीते साल 2011-12 में अमूल का सालाना कारोबार 11,668 करोड़ रुपए रहा है। इतनी भौगोलिक पहुंच और आर्थिक ताकत के बावजूद अमूल का कोई संगठित राजनीतिक प्रभाव नहीं है।औरऔर भी

जिस सरकार को आमतौर पर कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक आम आदमी के मानवाधिकारों की खास फिक्र नहीं रहती, उसे विदेश में काला धन रखनेवाले खास भारतीयों के मानवाधिकारों के उल्लंघन की भारी चिंता सता रही है। सोमवार को वित्त मंत्रालय की तरफ से कालेधन पर संसद में पेश श्वेतपत्र में कहा गया है कि सरकार ने दुनिया के जिन देशों के साथ दोहरा कराधान बचाव करार (डीटीएए) या कर सूचना विनिमय करार (टीआईईए) कर रखे हैं,औरऔर भी

देश के कोयला खदानों के आवंटन में घोटाले की बात कोई नई नहीं है। कई महीने पहले शिवसेना के एक सांसद ने ब्योरेवार तरीके के संसद में बहस के दौरान सारा कच्चा चिट्ठा खोला था। जेडी-यू अध्यक्ष शरद यादव ने भी इस पर हल्ला मचाया था। बीजेपी तक ने इस पर अपने तेवर गरम कर लिए थे। लेकिन फिर न जाने क्या हुआ कि सभी नरम पड़ गए। गुरुवार को अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने सीएजीऔरऔर भी

जो लोग ममता बनर्जी के तीखे तेवरों के बाद यूपीए सरकार के अस्थिर होने की बात कर रहे थे, उनके लिए बुरी खबर है कि माया और मुलायम दोनों मजबूती से सरकार के साथ डट गए हैं। मंगलवार को सरकार को उस समय राहत मिली, जब समाजवादी पार्टी और बीएसपी के समर्थन से एनसीटीसी सहित विभिन्न मुद्दों पर विपक्षी दलों के संशोधनों को खारिज कर दिया गया। तृणमूल कांग्रेस मतदान में अनुपस्थित रही। सपा व बीएसपी केऔरऔर भी

सरकार माल व सेवा कर (जीएसटी) को जल्दी से जल्दी लागू करने के लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम कर रही है। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने बुधवार को राजधानी दिल्ली में आयोजित सीमा शुल्‍क और केन्‍द्रीय उत्‍पाद शुल्क विभाग के एक समारोह के दौरान यह बात कही। उनका कहना था कि जीएसटी देश के अप्रत्यक्ष कर प्रणाली के इतिहास में सबसे अहम सुधार है। उद्योग व व्यापार जगत ही नहीं, तमाम अर्थशास्त्री व विशेषज्ञ मेंऔरऔर भी

प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी ने मल्टी ब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा कर दिया है। मंगलवार को पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने कहा कि एनडीए शासन के दौरान विपक्ष में रहते यही पार्टी खुदरा व्यापार में एफडीआई को राष्ट्र-विरोधी बताकर उसका विरोध करती थी। उन्होंने कहा, ‘‘लोकसभा में कांग्रेस के तत्कालीन मुख्य सचेतक प्रियरंजन दास मुंशी ने 2002 में संसद के शीतकालीन सत्र मेंऔरऔर भी

काले धन के मुद्दे पर विपक्ष ने बुधवार को सरकार की जमकर घेराबंदी की। इतना कि उसे लाल कर डाला। हर किसी दल ने इस कदर हमला किया कि सरकार को कोई जवाब देते नहीं बना। विपक्ष ने विदेश में जमा काले धन को स्वदेश लाने, वहां खाता रखने वाले भारतीयों को किसी भी तरह का संरक्षण नहीं देने और उनके नामों का खुलासा करने की मांग की। लोकसभा में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी की ओर सेऔरऔर भी

हर देशवासी को उसकी उंगलियों के निशान से लेकर पुतलियों की अलग बुनावट के आधार पर अलग नबंर देने की आधार परियोजना अधर में लटक गई है। वित्त मंत्रालय की संसदीय स्थाई समिति ने नेशनल आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया बिल को खारिज कर दिया है। इस समिति के अध्यक्ष बीजेपी नेता व पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा हैं। यूं तो सरकार के लिए इस समिति की सिफारिशों को मानना जरूरी नहीं है। लेकिन अभी-अभी रिटेल में एफडीआईऔरऔर भी