ये कैसा लोकतंत्र है जहां हम हर पांच साल पर सुशासन नहीं, कुशासन के लिए अपने राजनीतिक प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं? ये कैसा जनतंत्र है जहां हमें अपनी बुद्धि व समझ से नहीं, बॉस के आदेश के हिसाब से काम करना पड़ता है?और भीऔर भी

पढ़ा बहुत कुछ, पचाया कुछ नहीं तो बुद्धि पर चर्बी चढ़ जाती है। उसी तरह जैसे खाना अगर पूरा पचा नहीं तो शरीर पर चर्बी बनकर चढ़ता जाता है। इसलिए पढ़ें उतना ही, जितना पचा सकें। ध्यान दें, ज्यादातर बुद्धिजीवी अपच के शिकार होते हैं।और भीऔर भी

जमाने की सीधी चढ़ाई भावनाओं के मुलायम पोरों से नहीं, बुद्धि के कठोर नखों के दम पर पाई जा सकती है। जोंक जैसा चिपकने का गुण या बाघनखी जैसी पकड़। नहीं तो बार-बार आप फिसलते ही रहेंगे।और भीऔर भी

भावुक होना जरूरी है क्योंकि महज बुद्धि के दम पर हम सच तक नहीं पहुंच सकते। लेकिन बुद्धि को कभी इतनी दूर घास चरने नहीं भेज देना चाहिए कि किसी को हमारी भावनाओं से खेलने का मौका मिल जाए।और भीऔर भी

स्थिर शरीर से प्राण स्थिर होते हैं। स्थिर प्राण से बु्द्धि स्थिर होती है। स्थिर बुद्धि मन को संयत करती है। संयत मन चित्त को शांत करता है। शांत चित्त से ध्यान और ध्यान से योग सधता है।और भीऔर भी

जो चीज जैसी लगती है, वैसी होती नहीं। आंखों के रेटिना पर तस्वीर उल्टी बनती है, दिमाग उसे सीधा करता है। इसी तरह सच समझने के लिए बुद्धि की जरूरत पड़ती है जो अध्ययन, अभ्यास और अनुभव से ही आती है।और भीऔर भी