जिंदगी में हमेशा बच्चे रहे। जुबान के हमेशा कच्चे रहे। सोच में हमेशा लुच्चे रहे। हर किसी को अपने आगे टुच्चा समझते रहे। ऐसे में दुनिया क्या खाक सधेगी? अपने में ही डूबे रहे और जमाने को देखा-भाला नहीं तो वह भाव दे भी तो भला कैसे!और भीऔर भी

लाभ कमाने की मंशा किसी भी समाज में इंसान को आत्मकेंद्रित, अनैतिक, यहां तक कि अपराधी तक बना सकती है। काश, हम दूसरे की भलाई के लिए ही काम करते और उसी में हमारा भी भला हो जाता।और भीऔर भी