नई धारणाएं पुराने शब्दों में नहीं बांधी जा सकतीं। वे जीवन में जिस रूप, जिस भाषा में आएं, उन्हें वैसे ही स्वीकार करना होगा। नया हमारे हिसाब से नहीं ढलेगा। हमें ही उसके हिसाब से ढलना होगा।और भीऔर भी

भाषा हमें अपनी संवेदनाओं को सही तरीके से सजाने-संजोने की क्षमता देती है। भाषा न होती तो कोणार्क के सूर्य मंदिर की परिकल्पना नहीं हो सकती थी और न ही मोनालिसा का अवतरण हुआ होता।और भीऔर भी

यह सच है कि अंग्रेजी भाषा ने हम भारतीयों को दुनिया से लेने के काबिल बना रखा है। लेकिन आगे बढ़ने के लिए अंग्रेजी सीखने का दबाव न होता तो शायद हम लेने के बजाय दुनिया को दे रहे होते।और भीऔर भी