गोवा सरकार ने तय किया है कि अगर किसी घर की सालाना कमाई तीन लाख रुपए से कम है तो वह उसकी गृहिणी को 1000 रुपए प्रति माह अदा करेगी। यह महिलाओं के रोजमर्रा के घरेलू श्रम को मान्यता देने जैसा है। हालांकि, गोवा में मनोहर पर्रिकर के नेतृत्व में चल रही बीजेपी सरकार का कहना है कि यह कदम बढ़ती महंगाई की क्षतिपूर्ति के लिए उठाया जा रहा है। जो भी हो, इससे राज्य के करीबऔरऔर भी

संघर्ष तो एक ही है घर से लेकर दफ्तर और व्यापक समाज तक। वो यह कि जो मेहनत करते हैं, उन्हें उनका वाजिब श्रेय कैसे दिलाया जाए। घर में महिला को, फैक्टरी में कामगार को, दफ्तर में कर्मचारी को और राजनीतिक पार्टी में कार्यकर्ता को।और भीऔर भी

जो हमें रोज-ब-रोज की जिंदगी में दिखता है, उसकी पुष्टि सरकारी आंकड़ों ने कर दी है। देश में कामकाज करने योग्य आधी से अधिक 51 फीसदी आबादी स्वरोजगार में लगी है। केवल 15.6 फीसदी लोग ही नियमित नौकरी करते हैं। श्रमयोग्य आबादी का 33.5 फीसदी अस्थायी मजदूरी करता है। यह हकीकत सामने आई है राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) के 66वें सर्वे में। यह सर्वे जुलाई 2009 से जून 2010 के दौरान किया गया था। सर्वे केऔरऔर भी

तेरह की तारीख सत्ताधारी यूपीए गठबंधन के लिए कितनी शुभ होगी या अशुभ, इसका फैसला शुक्रवार को दोपहर तक हो जाएगा। चुनाव आयोग की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में अभी-अभी सम्पन्न विधानसभा चुनावों की मतगणना 13 मई को होगी और उस दिन दोपहर तक परिणाम आ जाने की उम्मीद है। वैसे, दो खास बातें इन चुनावों में गौर करने लायक रही हैं। एक यह कि इस बारऔरऔर भी

दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिकी में बड़ी संख्या में कामकाजी महिलाओं का मानना है कि उन्हें उनके पुरूष समकक्षों के मुकाबले कम वेतन मिलता है। भले ही अनुभव और दक्षता के मामले में वे उनके बराबर ही क्यों न हों। रोजगार के बारे में जानकारी देने वाली वेबसाइट कैरियल बिल्डर के सर्वे में 38 फीसदी महिला कर्मचारियों का मानना है कि उन्हें पुरूष समकक्षों के मुकाबले कम वेतन मिलता है। इससे पहले वर्ष 2008 में किएऔरऔर भी