कभी आपने सोचा है कि ज़रा-सा होश संभालते ही हम धन के चक्कर में घनचक्कर क्यों बन जाते हैं? और, यह धन आखिरकार आता कहां से है, इसका स्रोत, इसका उत्स क्या है? हम ट्रेडिंग भी तो इसीलिए करते हैं कि खटाखट धन आ जाए! निवेश भी इसीलिए करते हैं कि हमारा जितना धन है, वह बराबर बढ़ता रहे। आइए, आज हम धन के चक्कर में घनचक्कर बनने और धन-चक्र को समझने की कोशिश करते हैं। पहलेऔरऔर भी

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जो भी पैदा हुआ है, वह मरेगा। यह प्रकृति का चक्र है, नियम है। ट्रेन पर सवार हैं तो ट्रेन की होनी से आप भाग नहीं सकते। कूदेंगे तो मिट जाएंगे। यह हर जीवधारी की सीमा है। इसमें जानवर भी हैं, इंसान भी। लेकिन जानवर प्रकृति की शक्तियों के रहमोकरम पर हैं, जबकि इंसान ने इन शक्तियों को अपना सेवक बनाने की चेष्ठा की है। इसमें अभी तक कामयाब हुआ है। आगे भी होता रहेगा। मगर, यहांऔरऔर भी