तन से मुक्ति तो एक निश्चित विधान के हिसाब से अंततः हर किसी को मिल ही जाती है। लेकिन मरने से पहले तन से मुक्ति मन की मुक्ति के बिना नहीं मिलती। और, मन की मुक्ति के लिए सच्चा ज्ञान जरूरी है जो बड़ी मेहनत से मिलता है।और भीऔर भी

संघर्ष तो एक ही है घर से लेकर दफ्तर और व्यापक समाज तक। वो यह कि जो मेहनत करते हैं, उन्हें उनका वाजिब श्रेय कैसे दिलाया जाए। घर में महिला को, फैक्टरी में कामगार को, दफ्तर में कर्मचारी को और राजनीतिक पार्टी में कार्यकर्ता को।और भीऔर भी

मेहनत के बिना कहीं आसमान से कुछ नहीं टपकता। हां, जानवर या मशीन जैसे काम के दाम कम हैं। पर पढ़-लिखकर इंसानी हुनर के माफिक काम करेंगे तो दाम भी ज्यादा मिलेंगे। सीधी-सी बात है।और भीऔर भी

यूं तो हम सभी अंदर से सूरज की तरह तेजस्वी व मेधावी होते हैं। लेकिन बचपन से लेकर बड़े होने तक जमाने से मिले काले मेघ उसे घेर लेते हैं। चाहें तो हम हर मेघ को मेहनत-मशक्कत से काट सकते हैं।और भीऔर भी

मेहनत करते समय गान और मेहनत करने के बाद मान मिल जाए तो काम करने का उत्साह चौगुना हो जाता है। फिर तो इंसान शान से श्रम का रस लेता रहता है और उसे इसका फल भी मिलता है।और भीऔर भी

एक बार भोले शंकर ने दुनिया पर बड़ा भारी कोप किया। पार्वती को साक्षी बनाकर संकल्प किया कि जब तक यह दुष्ट दुनिया सुधरेगी नहीं, तब तक शंख नहीं बजाएंगे। शंकर भगवान शंख बजाएं तो बरसात हो। बरसात रुक गई। अकाल-दर-अकाल पड़े। पानी की बूंद तक नहीं बरसी। न किसी राजा के क्लेश व सन्ताप की सीमा रही और न किसी रंक की। दुनिया में त्राहिमाम-त्राहिमाम मच गया। लोगों ने मुंह में तिनका दबाकर खूब ही प्रायश्चितऔरऔर भी

काम ही राम है। केवल चार शब्दों की इस नन्हीं मुन्हीं कहावत में प्रागैतिहासिक युग से भी बहुत पहले की झांकी मिल जाती है कि किसी ईश्वरीय चमत्कार से मनुष्य मनुष्य नहीं बना बल्कि वह मेहनत और काम का ही करिश्मा है कि उसने मनुष्य के अगले दो पांवों को हाथों में तब्दील कर दिया अन्यथा वह अब तक चौपाया का ही जीवन जीता। पांवों का स्थान छोड़कर हाथ स्वतंत्र हुए तो पत्थर फैंकना, लकडी थामना औरऔरऔर भी