सरकार से लेकर कॉरपोरेट जगत के चौतरफा दबाव के बावजूद रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति की पांचवी द्वि-मासिक समीक्षा में ब्याज दरों को जस का तस रहने दिया। नतीजतन, बैंक जिस ब्याज पर रिजर्व बैंक से उधार लेते हैं, वो रेपो दर 8 प्रतिशत और जिस ब्याज पर वे रिजर्व बैंक के पास अपना अतिरिक्त धन रखते हैं, वो रिवर्स रेपो दर 7 प्रतिशत पर जस की तस बनी रही। रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुरान राजन नेऔरऔर भी

आज सुबह 11 बजे शेयर बाज़ार को ज़ोर का झटका लगेगा, धीरे या तेज़ी से। बाज़ार माने बैठा है कि ब्याज दर में 0.25% कमी होगी। ऐसा हो गया, तब भी और न हुआ, तब भी बाज़ार गहरा होता लगा सकता है। लेकिन खुदा-न-खास्ता रिजर्व बैंक ने अगर ब्याज दर को 0.50% घटाकर सीधे 7% कर दिया, तब तो बाज़ार तेजी से उछल सकता है। हालांकि इसकी उम्मीद न के बराबर है। देखते हैं ज़रा बारीकी से…औरऔर भी

बाज़ार जो चाहता था, रिजर्व बैंक ने उसे दे दिया। ब्याज दर चौथाई फीसदी घटा दी। कच्चे तेल के दाम भी नीचे हैं। फिर भी वह डेढ़ फीसदी का गोता लगा गया। कारण, मनचाहे आर्थिक फैसले पर अनचाही राजनीति हावी हो गई। केंद्र सरकार से डीएमके की समर्थन वापसी की बात बाज़ार को जमी नहीं।  खैर, इससे शायद सरकार के टिके रहने पर कोई फर्क न पड़े क्योंकि समाजवादी पार्टी और बीएसपी का बाहरी समर्थन उसे बचाऔरऔर भी

आज सुबह 11 बजे रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की समीक्षा करते वक्त ब्याज दरें घटा सकता है। ज्यादातर लोगों का यही मानना है। हालांकि वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने भी रिजर्व बैंक से यही अपील की है। लेकिन यह महज एक आशावाद है। रिजर्व बैंक गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव वही करते हैं जो उनकी समझ और विवेक कहता है। वे तो मौद्रिक नीति पर सलाह देने के लिए बनी समिति के बहुमत को भी ठुकरा कर फैसला करतेऔरऔर भी

नए हफ्ते का आगाज़ अच्छा नहीं रहा। पिछले हफ्ते बजट के दिन निफ्टी का न्यूनतम स्तर 5671.90 का था। पर सोमवार को वो इससे भी नीचे, 5663.60 तक चला गया। यह मायूसी के बढ़ने की निशानी है। अब तो लगता है कि 19 मार्च को रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की मध्य-तिमाही समीक्षा में अगर ब्याज दरें घटाने की घोषणा करेगा, तभी बाजार को नया ट्रिगर मिलेगा और उसमें नया उत्साह जगेगा। तब तक दो कदम पीछे, एकऔरऔर भी

आम निवेशक ज़रा-सा मौका मिलते ही म्यूचुअल फंडों की इक्विटी स्कीमों से तौबा कर ले रहे हैं। अभी बीते सितंबर महीने में उन्होंने इन इक्विटी स्कीमों से 3306 करोड़ रुपए निकाले हैं। यह जानकारी म्यूचुअल फंडों के साझा मंच, एम्फी की तरफ से जारी ताजा आंकड़ों में दी गई। ये आंकड़े तैयार तो शुक्रवार, 5 अक्टूबर को ही कर लिए गए थे। लेकिन जारी इन्हें सोमवार को किया गया। किसी भी एक महीने में म्यूचुअल फंडों कीऔरऔर भी

बाजार की उम्मीद और अटकलें खोखली निकलीं। रिजर्व बैंक गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव ने ब्याज दरों में कोई तब्दीली नहीं की है। बल्कि, जिसकी उम्मीद नहीं थी और कहा जा रहा था कि सिस्टम में तरलता की कोई कमी नहीं है, मुक्त नकदी पर्याप्त है, वही काम उन्होंने कर दिया। सीआरआर (नकद आरक्षित अनुपात) को 4.75 फीसदी से घटाकर 4.50 फीसदी कर दिया है। यह फैसला इस हफ्ते शनिवार, 22 सितंबर 2012 से शुरू हो रहे पखवाड़े सेऔरऔर भी

जब भी कभी रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति या उसकी समीक्षा पेश करनेवाला होता है तो उसके हफ्ते दस-दिन पहले से दो तरह की पुकार शुरू हो जाती है। बिजनेस अखबारों व चैनलों पर एक स्वर से कहा जाता है कि ब्याज दरों को घटाना जरूरी है ताकि आर्थिक विकास की दर को बढ़ाया जा सके। वहीं रिजर्व बैंक से लेकर राजनीतिक पार्टियों व आम लोगों की तरफ से कहा जाता है कि मुद्रास्फीति पर काबू पाना जरूरीऔरऔर भी

जब आर्थिक विकास दर घटकर 5.3 फीसदी पर आ गई हो, अप्रैल के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईआई) में महज 0.1 फीसदी बढ़त दर्ज की गई हो और निवेश जगत में हर तरफ मायूसी का आलम हो, तब अगर 23 में से 17 अर्थशास्त्री मान रहे थे कि रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की पहली मध्य-तिमाही समीक्षा में रेपो दर में चौथाई फीसदी कमी (8 फीसदी से 7.75 फीसदी) कर देगा तो उनका मानना कोई नाजायज नहीं था। लेकिनऔरऔर भी

पिछले हफ्ते तक शेयर बाजार में मूड पस्ती का था। इस हफ्ते उत्साह का है। हफ्ते के पहले चार दिनों में सेंसेक्स नीचे में 15,748.98 से ऊपर में 16,680.59 तक 900 अंकों से ज्यादा की पेंग भर चुका है। हालांकि, आज आखिरी दिन माहौल थोड़ा सुस्त है। ऐसे में क्या मान लिया जाए कि अब पस्ती का आलम खत्म हो गया है और तेजी का नया क्रम शुरू हो रहा है। इस बीच मूलभूत स्तर पर अर्थव्यवस्थाऔरऔर भी