समाज बार-बार जमकर जड़ होती और टूटकर फिर से बनती सत्ता का नाम है। यथास्थिति बनी रही तो कुशल है। अन्यथा बवाल मच जाता है। नया कुछ करनेवालों को समाज का बहुमत नकारता है। लेकिन अल्पमत को लेकर वही लोग नया समाज बनाते हैं।और भीऔर भी

मान्यता, संस्कार या परंपरा – ये सब जड़त्व व यथास्थिति के पोषक हैं, जबकि शिक्षा से निकली वैज्ञानिक सोच गति का ईंधन है। जड़त्व और गति की तरह शिक्षा और संस्कार में भी निरंतर संघर्ष चलता रहता है जिसमें अंततः गति का जीतना ही जीवन है।और भीऔर भी

सपनों का मर जाना खतरनाक है, लेकिन उससे भी ज्यादा खतरनाक होता है सवालों का मर जाना। जिस पल से हम सवाल उठाना बंद कर देते हैं, उसी पल से हम यथास्थिति को गले लगा लेते हैं जिससे ज्ञान से लेकर सपनों तक का स्रोत बंद हो जाता है।और भीऔर भी

यथास्थिति को मानो मत। उसे चिंदी-चिंदी करने के लिए लड़ो। इसलिए नहीं कि हम नकारवादी या आस्थाहीन हैं, बल्कि इसलिए कि हमें मानवीय क्षमता पर अगाध आस्था है; हमारी दृढ़ मान्यता है कि हालात को बेहतर बनाया जा सकता है।और भीऔर भी

समय हर जड़त्व से मुक्त कछुआ है। लेकिन हम जड़त्व से ऐसे घिरे हैं कि यथास्थिति नया कुछ करने से रोकती है। सोते-जागते खरगोश की तरह बढ़ते हैं हम। ठान लें तो समय से आगे निकल जाएं।और भीऔर भी

बदलाव शाश्वत है। इसलिए दुख भी शाश्वत है क्योंकि बदलाव से यथास्थिति में मौज कर रहे लोगों को दुख होता है। बदलने वाले भी कष्ट पाते हैं। लेकिन नए की भावना उनकी सारी पीड़ा हर लेती है।और भीऔर भी