प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने चीनी क्षेत्र को नियंत्रण-मुक्त करने के मुद्दे पर एक विशेषज्ञ समिति बना दी है। इसकी अध्यक्षता उनकी आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन डॉ. सी रंगराजन को सौंपी गई है। समिति में वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु, कृषि लागत व मूल्य आयोग (सीएसीपी) के चेयरमैन अशोक गुलाटी और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सचिव के पी कृष्णन को मिलाकर कुछ छह सदस्य होंगे। सरकार ने खाद्य व उपभोक्ता मामलात मंत्रालयऔरऔर भी

पहले औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) के आंकड़ों ने खुशखबरी दी कि नवंबर में यह 5.9 फीसदी बढ़ गया है। फिर दिसंबर की मुद्रास्फीति ने साफ कर दिया कि करीब दो साल से अर्थव्यवस्था के सीने पर धमधम करता बोझ हल्का पड़ गया है। सोमवार को वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक सकल मुद्रास्फीति की दर दिसंबर 2011 में 7.47 फीसदी रही है। इससे पिछले महीने नवबंर में यह 9.11 फीसदी थी औरऔरऔर भी

इक्कीस साल एक महीने पहले सितंबर 1990 से देश में बैंकों की ब्याज दरों को बाजार शक्तियों या आपसी होड़ के हवाले छोड़ देने का जो सिलसिला हुआ था, वह शुक्रवार 25 अक्टूबर 2011 को रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति की दूसरी तिमाही समीक्षा के साथ पूरा हो गया। रिजर्व बैंक के गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव ने ऐलान किया, “अब वक्त आ गया है कि आगे बढ़कर रुपए में ब्याज दर को विनियंत्रित करने की प्रकिया पूरी करऔरऔर भी

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन सी रंगराजन ने कहा कि औद्योगिक उत्पादन की निराशाजनक रफ्तार को देखते हुए चालू वित्त वर्ष के औद्योगिक वृद्धि के अनुमान की समीक्षा करनी होगी। उल्लेखनीय है कि जुलाई माह में औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर घटकर मात्र 3.3 फीसदी रह गई है। परिषद के चेयरमैन ने सोमवार को औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) का आंकड़ा जारी होने के बाद कहा कि पूरे साल के औद्योगिक उत्पादन के अनुमान के संबंधऔरऔर भी

महंगाई का असर लोग जब झेल चुके होते हैं, तब सरकार को पता चलता है और यह अगर ज्यादा हुई तो उसकी परेशानी बढ़ जाती है क्योंकि इससे मुद्रा से जुड़े सारे तार हिल जाते हैं, बैंकों व कॉल मनी की ब्याज दरों से लेकर सरकार की उधारी तक प्रभावित होती है और रिजर्व बैंक को फटाफट उपाय करने पड़ते हैं। ऊपर से सरकार को विपक्ष का राजनीतिक हमला अलग से सहना पड़ता है। इस समय यहीऔरऔर भी

मुद्रास्फीति की ऊंची दरों के चलते अब डीजल के दाम बढ़ाने का फैसला अगले वित्त वर्ष तक टाला जा सकता है। यह कहना है कि प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन सी रंगराजन का। उन्होंने समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट को बताया कि, “शायद मार्च 2011 तक अगर मुद्रास्फीति की दर 6 फीसदी के आसपास आ जाती है तो उस वक्त संभवतः डीजल के मूल्यों को बढ़ाया जा सकता है।” पिछले हफ्ते इस मुद्दे पर वित्त मंत्रीऔरऔर भी

वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने कुछ दिन पहले कहा था कि इस साल जुलाई-सितंबर की तिमाही में देश के आर्थिक विकास दर अप्रैल-जून की तिमाही की विकास दर 8.8 फीसदी के काफी करीब रहेगी। दूसरे अर्थशास्त्री और विद्वान कल तक कह रहे थे कि औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में जिस तरह कमी आई है, उसे देखते हुए जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में बढ़त की यह दर 8 से 8.3 फीसदी ही रहेगी। लेकिन केंद्रीयऔरऔर भी

अगर किसी को भारतीय अर्थव्यवस्था की सही दशा-दिशा पर शक हो तो उसे अब प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने दूर कर दिया है। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन की अध्यक्षता वाली इस परिषद ने ‘इकनोमिक आउटलुक 2010-11’ नाम से जारी लगभग नब्बे पेज की रिपोर्ट में अर्थव्यवस्था के एक-एक पहलू का विवेचन किया है। उसका खास आकलन है कि इस वित्त वर्ष 2010-11 में कृषि की विकास दर 4.5 फीसदी रहेगी, जबकि बीते वित्तऔरऔर भी