सरकार से लेकर कॉरपोरेट जगत के चौतरफा दबाव के बावजूद रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति की पांचवी द्वि-मासिक समीक्षा में ब्याज दरों को जस का तस रहने दिया। नतीजतन, बैंक जिस ब्याज पर रिजर्व बैंक से उधार लेते हैं, वो रेपो दर 8 प्रतिशत और जिस ब्याज पर वे रिजर्व बैंक के पास अपना अतिरिक्त धन रखते हैं, वो रिवर्स रेपो दर 7 प्रतिशत पर जस की तस बनी रही। रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुरान राजन नेऔरऔर भी

दिसंबर महीने के दूसरे पखवाड़े में आम लोगों के लिए ऐसे सरकारी बांड जारी कर दिए जाएंगे जिसमें बचत को महंगाई की मार से सुरक्षित रखा जा सकता है। इन बांडों का नाम है इनफ्लेशन इंडेक्स्ड नेशनल सेविंग्स सिक्यूरिटीज – क्यूमुलेटिव (आईआईएसएस-सी)। इन्हें रिजर्व बैंक केंद्र सरकार से सलाह-मशविरे के बाद लांच कर रहा है। शुक्रवार को रिजर्व बैंक ने आधिकारिक जानकारी दी कि इन्हें दिसंबर माह के दूसरे हिस्से में पेश कर दिया जाएगा। बता देंऔरऔर भी

फाइनेंस की दुनिया में चाहे कोई योजना बनानी हो, किसी स्टॉक या बांड का मूल्यांकन करना हो या बकाया होमलोन की मौजूदा स्थिति पता करनी हो, हर गणना और फैसला हमेशा आगे देखकर किया जाता है, पीछे देखकर नहीं। पीछे देखकर तो पोस्टमोर्टम होता है और पोस्टमोर्टम की गई चीजें दफ्नाने के लिए होती हैं, रखने के लिए नहीं। इसलिए बस इतना देखिए कि आपके साथ छल तो नहीं हो रहा है। भरोसे की चीज़ पकड़िए औरऔरऔर भी

आज सुबह 11 बजे शेयर बाज़ार को ज़ोर का झटका लगेगा, धीरे या तेज़ी से। बाज़ार माने बैठा है कि ब्याज दर में 0.25% कमी होगी। ऐसा हो गया, तब भी और न हुआ, तब भी बाज़ार गहरा होता लगा सकता है। लेकिन खुदा-न-खास्ता रिजर्व बैंक ने अगर ब्याज दर को 0.50% घटाकर सीधे 7% कर दिया, तब तो बाज़ार तेजी से उछल सकता है। हालांकि इसकी उम्मीद न के बराबर है। देखते हैं ज़रा बारीकी से…औरऔर भी

बाज़ार जो चाहता था, रिजर्व बैंक ने उसे दे दिया। ब्याज दर चौथाई फीसदी घटा दी। कच्चे तेल के दाम भी नीचे हैं। फिर भी वह डेढ़ फीसदी का गोता लगा गया। कारण, मनचाहे आर्थिक फैसले पर अनचाही राजनीति हावी हो गई। केंद्र सरकार से डीएमके की समर्थन वापसी की बात बाज़ार को जमी नहीं।  खैर, इससे शायद सरकार के टिके रहने पर कोई फर्क न पड़े क्योंकि समाजवादी पार्टी और बीएसपी का बाहरी समर्थन उसे बचाऔरऔर भी

आज सुबह 11 बजे रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की समीक्षा करते वक्त ब्याज दरें घटा सकता है। ज्यादातर लोगों का यही मानना है। हालांकि वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने भी रिजर्व बैंक से यही अपील की है। लेकिन यह महज एक आशावाद है। रिजर्व बैंक गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव वही करते हैं जो उनकी समझ और विवेक कहता है। वे तो मौद्रिक नीति पर सलाह देने के लिए बनी समिति के बहुमत को भी ठुकरा कर फैसला करतेऔरऔर भी

बजट के बाद बाज़ार को सबसे बड़ा झटका। सेंसेक्स 1.03 फीसदी तो निफ्टी 1.06 फीसदी नीचे। वजह कोई खास नहीं। फिर भी बताते हैं कि बाज़ार को ब्याज दरें न घटने का भरोसा हो चला है। दूसरे, मॉरगन स्टैनले और एचएसबीसी ने कहा है कि नए साल में भारतीय अर्थव्यवस्था के बढ़ने की दर घट जाएगी। लेकिन असली खेल यह है कि छोटे-बड़े सभी निवेशक ज़रा-सा बढ़ने पर मुनाफा काटने में जुट जा रहे हैं। आज थोकऔरऔर भी

भारत शायद दुनिया के उन गिने-चुने देशों में होगा, जहां मुद्रास्फीति की मार की भरपाई बैंक बचत खाते पर दिए जानेवाले ब्याज से नहीं करते। ज्यादातर बैंक ग्राहकों को उनकी बचत पर महज चार फीसदी ब्याज देते हैं, जबकि मुद्रास्फीति की दर सात से दस फीसदी चल रही है। इसीलिए लोगबाग बैंक खाते में धन रखने के बजाय सोने या जमीन-जायदाद में लगा रहे हैं। वित्त मंत्री चिदंबरम ने आम बजट में इसी प्रवृत्ति को रोकने केऔरऔर भी

बाजार की उम्मीद और अटकलें खोखली निकलीं। रिजर्व बैंक गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव ने ब्याज दरों में कोई तब्दीली नहीं की है। बल्कि, जिसकी उम्मीद नहीं थी और कहा जा रहा था कि सिस्टम में तरलता की कोई कमी नहीं है, मुक्त नकदी पर्याप्त है, वही काम उन्होंने कर दिया। सीआरआर (नकद आरक्षित अनुपात) को 4.75 फीसदी से घटाकर 4.50 फीसदी कर दिया है। यह फैसला इस हफ्ते शनिवार, 22 सितंबर 2012 से शुरू हो रहे पखवाड़े सेऔरऔर भी

अभी तक रिजर्व बैंक के गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव अपनी अघोषित जिद पर अड़े हुए थे कि जब तक केंद्र सरकार राजकोषीय मोर्चे पर कुछ नहीं करती या दूसरे शब्दों में अपने खजाने का बंदोबस्त दुरुस्त नहीं करती, तब तक वे मौद्रिक मोर्चे पर ढील नहीं देंगे। यही वजह है कि पिछले दो सालों में 13 बार ब्याज दरें बढ़ाने के बाद रिजर्व बैंक ने इस साल अप्रैल में इसमें एकबारगी आधा फीसदी कमी करके फिर हाथ बांधऔरऔर भी